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तुम कुं सब बन ढूंढत फिरी । यब हम भई महा सुभ घडी ॥ मैं दरसन अब तुम्हारा लखा | चरा इंडि अन जाऊं किहां ।। ५६०३ ।। मैं मान्या नहीं तुम्हारा वचन करी तपस्या वन में कठिन || मोपरि प्रभु होइ क्रिपावंत । अजोध्या चलि सुख करी अनंत ५६१० ।।
तुम्हारी प्राग्या राखू सीस | छंडो तप भुगतो सुख ईस ।। करो राज भोग संसार । नपके किए देह सब धार ।१५६११॥
वाराण
छीजें काया घटै स्वरूप | हम सीता नारी प्रत्य ने स्वरूप || पालो गेह भोग सब साज | काया से कष्ट सही नेकाज ॥ ५६१२१ मैं वन में माथी तप | श्री जिन ध्यान करे थी जप || मोसु कही बात समझाइ ।। ५६१३ ।।
freeर की कन्या अाड़ जोवनत क्यु दीक्षा लेड पालम कष्ट किया बहु दोष 1 जोवन स कीजिए पोष ।।५६१४ || वृद्धश्रवस्था कीजिए जो अपर कल जिभोग ||
पत्र इन्द्रों में क्यूं दुख दे |1
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तू फिर आराम के पास । हम है कन्या इह मन ग्रास ।। ५६१५ । तुम पटराणी हम सेवा करें। रामचन्द्र सों सब सुख भरें ॥ वे भी तुम में प्राथै प्रस्तरी । तब मांची जाणुगे खरी ।। ५६१६।। देवांगना एक सहस्र | बालक बस रूप को हंस ||
सोलह सब की श्रृंगार । श्राभरण सबै सोमं इकसार ।। ५६१७॥
रूरांट उतरी अपलस । सबद सुहावन रस सुं भरया ॥ कोकिल कंठ कहै मुख बौन रूपयंत प्रति दीरघ नंन ||५६१८ बहुराग छतीरा रागनी | सोलह कला संपूरन वनों ।। करें नृत्य बोलें आधीन १५६१९ ।।
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ताल मृदंग बजा बीन राजभोग तजि बैठे आन ए सुख छंडि कहा होइ प्रग्यांन ॥ चलो प्रभू हमारे संग । सुन भुगतो दुख का करो त ।।५६२० ।। इन्द्री मोरया हो हैं पाप । ए सुखी सहो संताप |
यह है भोग भूगत की स मानू तुम हमारा उपदेस ।।५६२१ ।।
बहुत भाव दिखावे खत्री | नांचे सरस महा गुण भरी ।। बांह सठावें जंभाई लेह | पग गुष्ठ भूमि परि देह ||५६२२ । । उछल घड़ी गम डोर । लोई फूल सोमैं रंग सार || सिर तैं वस्त्र धरिन परि पडें । गावं ना
भय नहीं घरें ।। ५६२३ ।।