Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 544
________________ ४७, पपरापुरण करी रसोई उत्तम भली । बहु पकवान सौंज बहु मिली ।। महासुगंध मनोहर बने । हरिष हरिष बडे कोए घने ।। ५५८२।। पटरस व्यंजन प्रासुक नीर । भात दाल और उजली खीर ।। रामचन्द्र उठिया मुनीन्द्र । राजा राणी भयो भानंद ॥५५८३।। विधि सी द्वारा पेषण किया । चरण धोइ गंधोदक लिया ।। बयानस सौं दीयां दान । मुखसौ बोल्या सुभ भगवान ।। ५.५८४।। भई दुदुभी किनर गीत । रतनदृष्टि पुढपन की रीत ।। जै जै कार देवता करें । धन्य धन्य वचन मुख ही घरे' ।।५५८५।। वनमें फिर कर लाग्या ध्यान । राजा मैं चित समकित आन ।। बहुतां मैं समकित व्रत लिवा । । सब ही के मन बाई वा ॥५५८६।। दोन सुपात्रह दीजे सही। परवा वरचा पूज करेइ ।। बहुतों ने छुटया मिथ्यात । मुनिसुव्रत सेवें दिन रात ५५५८७।। रामचंद्र दें धरम उपदेस । मान राव रंक उपदेम ।। अमृता नाका नारायः । उत्तर भवसागर ते पार ||५५८८।। मुनिबर ग्यांन गंभीर, करें धरम समझाई करि । पाय है पर पीर, रामचंद्र मुनिवर बली ।।५५८६।। चौपई नासा दृष्टि आत्तम ध्यान । बारह लप द्वादरा व्रत जांनि ।। तेरह विध सौं चारित्र धरा । समकित सौ दिन रात्र' मग ॥५५६० ।। संच महावत पांच सुमति । मन वच काया तीन गुपति ।। संका रहित रह्या वन मांझ । करै सामायिक वासर मांभि ।। ५५६१।। च उदह पाठ पगैसा सहैं । राग द्वेष सुपरहा रहे । च्यार कषाइ करी सब दूर । क्रोध मान माया कू चूर ।।५५६२।। अठाईस मूल गुण पाल । तोड्या मोह करम का जाल || पंचइन्द्री की रोकी चाल | छाडि दिया माया जंजाल ।।५५६३ ।। भारत रुद्र दुई ध्यान हैं बुरे । ते प्रभु नै सब परिहरे ।। परम मुकल' सो ल्याधा चित्त । सुकल ध्यान की जांणी थित ॥५५६४।।

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