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मुनि समाचन्द एवं उनका पद्मपुराण
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देखें रूप सराहैं दुनी । इनकी महिमा जाइ न मिनी ।। के सुरपति के कोई देव । ग्यांनवंत ते समझे जीव ।।५५७०।। श्री रामचंद्र आए मुनिराइ । प्रहार निमित्त पहुंचे इस ठाइ ।। घर घर द्वारा पेषण होइ । क्षेत्र सुध करें सब कोइ ।।५५७१।। उत्तम वस्तु र सोचे सुध । मब मैं दान देश की बुध ।। सन ही बछ अंसा भाव । धन्य बहै जीमैं जिह ठाम ।।५५७२१५ नग्री में हुवा बहु सोर । इटा हाथी बंधन तोडि ।। दाहे फोडे हाट पट्टा ठाइ । घोडा छटा तोडि हिपहिणाइ ।।५३७३।। कोलाहल सणि प्रतिनदी भप । निकस करोखा देख मप ॥ मुनि कौं देखि कहै इस भाइ । भेज्या किंकर लेह बुलाय ||५५७४।। दोरा घणां आए मूनि पास । नमस्कार करि विनती भास ।। दोड़ कर जोड़ि बीन खरे । हम पर प्रभुजी क्रिपा जो करें ॥५५७५।। हमारा राजा पासि तुम चलो। भोजन लेहु घरम में मिलो ।। उनां - जाण्यां मुनी का भेद । अंतरराय भया मुनी कु खेद ।१५५७६।। फिर प्राया वन में धारया जोग । पसघाताप करें सब लोग ।। अव के बे मुनि आर्य फेरि । विष सौं भोजन खां इइ बेर ||५५७७।।
मुनि कू भई अंतराइ, भूपति विधि समझ नहीं ।। फिर आए वन सद, लिव ल्याए चिद्रप सौं ॥५५७८।। इति श्री पपपुराणे गोपुरसौं छोभ विधानकं
११३ वां विधानक
चौपई
राम की तपस्या
पष्टमास पर गह्मो संन्यास । एक वरष पीछे ए पास ।। जे बन में पाऊं आहार । भोजन कू इछो सिंह बार ।। ५,५७६ ।। नगर माहि ने कबहु जाहि । अंसा मन राख्या उछाह ।। प्रतिनंद सई प्रभावती प्रस्तरी । उनु सोच अंसी विध करी ॥५५८०।। जवसं दंड प्राय इहां मुनी । दान देय करि सेवा धनी ।। नंदन बहुरि सरोबर वन माझ । दंपति गए क्रीडा कु सांभि ।।५५८१।।