Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 541
________________ मुनि सभाचंच एवं उनका पद्मपुराण सोरठा मन में धरइ राग, राज ग्धि सब परिहरी ।। दया भाव सू राग, धर्म प्रीत राग्लो स्ररी ॥५४४३।। इति श्री पद्मपुराणे लखमरण संस्कार मित्र देव प्रागमन विधानक १११ षां विधानक चौपई सधन के सांभलि बैन । रामचन्द्र सुख हुवा चैन ।। अन्य सशुधन तेरी बुधि । समकित मुन रसवो सुधि ।। ५५४६।। अनंग लवन लवन का पूत । दोघी सगली राज विभूति ।। पर बिठाइ करि हाले कानस 1 अनंग लवन मबही में गग्ग ।।५५४१।। परजा की रक्षा बहु कर । दया दान चित बहु विध घर ।। दुरजन दुमदा छिम गरे । गिगा सुर: माल्यो हिये ।।५५५०। भरथ चक्र ने छंड्या राज | घसा रामचन्द्र ने किए काज || संभूषण भभीषगा का पूत | दीयों लंका गज विभूत ।। ५५५१।। राजनीति सब जाग भली । प्रजा सुखी मन मान रली ।। मदगम गुल अगद का बली । सुग्रीव राज सोग्गा विध भली ।।५५५२।। वेईराग भात्र तब भयो नरेस । चाहे भया दिगंबर भेस ।। अरहदास सेठ प गए । सेट महोत्सव बहू विष किार ।।५५५३।। पुछे सेठ मे रावजी बात । गरु बतावो उत्तम जात ।। सेठ कहैं सुग्रत हैं मुनी । चारण रिध नाहि कपनी ।।५५५४।। मुनिसुव्रत स्वामी का बंग । महामुनी धरम का प्रस ।। अंसी सुणि मुनिवर 4 रले । प्रष्ट द्रव्य जे उत्तम भले ।।५५५'५।। पूजा कारण चले भूपाल । सेना सकल चली लिह काल ।। वन में मुनी का दरसन पाइ। उत्तरे भूमि सरब ही राड ॥५५५६।। करि डंडोत चरण कू नए । देइ परिक्रमा ठाढ़े भए । ग्रस्तुति करि बोलियो नरेन्द्र । ठाठे भए साध को वृन्द ॥५५५७।। स्वामी हम कू देहु चारित्र । जीतें मोह क्रम के सन्न ।। राजा सहस सोलह संग और । सत्ताईस सहस्र त्रिव संग और ॥५५५८।।

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