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मुनि सभाब एवं उनका पपपुराण
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जैसे तुम तैसे ये भ्रात । छंडो क्रोथ करो मन सांत ।। मुख संसार सदा नहीं थिर । सागर बंध रहै नहीं चिर ॥५३५६।। एफण दिक्स होई विणास । ता थे करो मुगति की प्रास ।। मुकति बघु सुख सदा अचल : श्री जिनवाणी रहें अटल ।।५६६०|| समफित सौ निसचे तप करो । बैग जाई अमर पद घरो॥ बहुत भांत समझायो ग्यान । सबको भयो परम सौं ध्यान ।।५३६१॥ लखमण की प्राग्या कु गए । हाथ जोडि थाडे दोन भए । भादि भनादि भ्रम्य साहं तित । समति बिना न पाई गति ।।५३६२।। भ्रम्यों लख चौरासी जोंनि । बिहंगति मांही कौन गौन ।। रोग सोग मारत मां फिरचा | श्री जिन वाक्य न चित मां घरचा
||५३६३।।
अब दिया ले साधं जोग । जनम जरा का मेटै रोग । लखमण बोल सुण हो कुमार 1 जैन धरम खांडे की धार ॥५३६४।। तुम बालक भरि जोवन स । कैसे संघ जती का भेस ।। भुगत्या नहीं सुख संसार । नऊल तुम व्याही हे नारि ।। ५३६५।। उनहि छोडि जई दिल्या लेहु । उनके सूल तुम कहा फरेष्टु ।। जई तुम उनका गहो संताप । तो तुमको होवई बहु पाप ॥५३६६।। इह है भोग भगत की बेर । चउथै प्राश्रम संयम फेर ।। ए सुख छोरि लीजिए न जोग । जोवन समय भोगयो भोग ।।५३६७|| अणुव्रत सरावग का लेहू | पूजा दान सुपात्रां देह ।। ध्यारू विध के दीजे दांन । वयाबरत सब का सनमान ।।५३६८।। वोल कुमर सुणु तुम तात । भ्रमे लक्ष चउरासी जात ।। संपय विभव बहुत परवार । भव भव बीम लहे नहि पार ॥५३६६।। जम की पासि पई जब हंस । होह सहाई धरम का संस ।। स्वारथ रूपों सब संसार । पुद्गल आदि न कोई सार ॥५३७०।। पुन्य पापन एक कर जान । इनसे फिर मुगत इह मान । तग करि के पावै निरवान । भ्रमै नहीं भवसागर मान ।।५३७१।। महाबल मुनिवर दिग जाइ। दिल्या लही मन बम काइ।। मातमध्यान लगाया जोग । छोड दिये संसारी भोग ।।५३७२।।