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मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण
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वहा घरम बिलंब न कीजिए, करिये पहुंच समान ।। मम बांछित सुनो... बहुरि लारिसान .. . इति श्री पपपुराणे भावनंडस परलोक गमन विधानक
१०५ वां विधान
चौपई हनुमान की तपस्या गगन
लखमण सम अन्य न कोई भूप । वल पौरिख प्ररु महा स्वरूप । रामचन्द्र सेती प्रति प्रीत । जाणे सकल धरम की रीत ।।५३८६।। उनाले भुगत सुख घणे । सीतल मनोहर जल सु वणे ॥ ऊंचा मंदिर प्रति उत्तंग । महा सुगंध फूल सुरंग ॥५३८७।। झरनां तं तिहां निकल नीर । उछल जल सुख हुवं सरीर || गोकर ढांढी छाई छान | ई माफिक सुख भुगत हनुमान ॥५३८८।। बहुरि विचार कर मनमाहि । यह संसार भरनो दुस्ख माहि ।। पुत्र कलित्र सब लिये बुलाई । उनी बात कही समझाइ ।।५३८६।। इह संसार बिजली उद्योत । फिर छिन में अंधियारा होत ।। हम तुमर्सी ईहाँ लग भी प्रीत । अब हम जाह हो इहो अनीत ।। ५.३६० ।। इनका चित्त निहचल थंभ । रोवं परिजन लोग कुटंब ।। चदि सुखपाल चैति बन गए । राजा प्रजा परियण संग थए ।।५३६१।। सेना सकल भई उठि संग । बाजा बाजै ताल मृदंग ।। धरम रतन मुनिवर पं जाइ । नमस्कार करि बोल राइ ॥५३६२।। स्वामी मोक दिष्या देंट । बौह पकडि अपनी संग लेह ।। विद्युतगति सुत न दे राज । सौंपी सब परियण की लाज ।। ५३६३ ।। मुकट उतारि सबै शृंगार । बसरि फाडि दिए तिह डालि ।। लौंचे केस दिगंबर रूप । सात से पंचास प्रवर संगि भूप ।।५३६४।। कर तपस्या मन बच काइ । प्रातमध्यान धरै मन लाह ।। सेरह विध सौं चारित्रं घरचा । बारह इस क्सि तप करया ।।५३६५।। समकित प्रष्ट ग्रंग संजुक्तं । भष्ट अंग' घरि ग्यान बहुत्त ।। अनष्या का प्रेष्यन कर । ज्यान खड़ग करमें ले घर ।।५३६६||