Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 529
________________ मुनि सभाचंद एवं उनका पमपुराण ४६३ वहा घरम बिलंब न कीजिए, करिये पहुंच समान ।। मम बांछित सुनो... बहुरि लारिसान .. . इति श्री पपपुराणे भावनंडस परलोक गमन विधानक १०५ वां विधान चौपई हनुमान की तपस्या गगन लखमण सम अन्य न कोई भूप । वल पौरिख प्ररु महा स्वरूप । रामचन्द्र सेती प्रति प्रीत । जाणे सकल धरम की रीत ।।५३८६।। उनाले भुगत सुख घणे । सीतल मनोहर जल सु वणे ॥ ऊंचा मंदिर प्रति उत्तंग । महा सुगंध फूल सुरंग ॥५३८७।। झरनां तं तिहां निकल नीर । उछल जल सुख हुवं सरीर || गोकर ढांढी छाई छान | ई माफिक सुख भुगत हनुमान ॥५३८८।। बहुरि विचार कर मनमाहि । यह संसार भरनो दुस्ख माहि ।। पुत्र कलित्र सब लिये बुलाई । उनी बात कही समझाइ ।।५३८६।। इह संसार बिजली उद्योत । फिर छिन में अंधियारा होत ।। हम तुमर्सी ईहाँ लग भी प्रीत । अब हम जाह हो इहो अनीत ।। ५.३६० ।। इनका चित्त निहचल थंभ । रोवं परिजन लोग कुटंब ।। चदि सुखपाल चैति बन गए । राजा प्रजा परियण संग थए ।।५३६१।। सेना सकल भई उठि संग । बाजा बाजै ताल मृदंग ।। धरम रतन मुनिवर पं जाइ । नमस्कार करि बोल राइ ॥५३६२।। स्वामी मोक दिष्या देंट । बौह पकडि अपनी संग लेह ।। विद्युतगति सुत न दे राज । सौंपी सब परियण की लाज ।। ५३६३ ।। मुकट उतारि सबै शृंगार । बसरि फाडि दिए तिह डालि ।। लौंचे केस दिगंबर रूप । सात से पंचास प्रवर संगि भूप ।।५३६४।। कर तपस्या मन बच काइ । प्रातमध्यान धरै मन लाह ।। सेरह विध सौं चारित्रं घरचा । बारह इस क्सि तप करया ।।५३६५।। समकित प्रष्ट ग्रंग संजुक्तं । भष्ट अंग' घरि ग्यान बहुत्त ।। अनष्या का प्रेष्यन कर । ज्यान खड़ग करमें ले घर ।।५३६६||

Loading...

Page Navigation
1 ... 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572