Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 536
________________ ૪૬૪ जीव लखमण मेरा प्रात । इसका कहे जलावो गात ॥1 दुरजन वचन क्युं मातु आज राम का तीव्र मोह माहि नहीं काहू सूं काल ||५४७८ ॥ अब बोलें तुम छोड़ो क्रोध । तुमारा देखिया में समोध ॥ लखमरण तुम मृतक कहो । मोह राम रमन कछु लहो ||५४७६ ॥ चूहा जांणि बूझि सुध बोसरी, मोह करम के भाव मुवां जीवत कहैं, लिया फिरें इस ठांव ॥ ५४८०।। इति श्री पद्मपुराणे भभीषरण संसार परिष्या विधानक ११० यो विधानक चौपई पद्मपुराण सुग्रीव श्राइ करी बीनती । मृतक देह में जीव न रती ॥ माया में ज्यु रहे भुलाइ कहो ज्यु चिता संवारं जाइ ॥२४८१|| दहन किया लखमण की करो । राज विभूत फिर संभरी || सासुरिएकोप्या रामचंद्र । दहन करो तुमारो कुटुंब || ५४६२ ।। लासु भुवा सब मिल के कला ॥ कैसा बोल बोलें अग्यनि ||५४८३ ।। हमसों तब कोई कहै कछु नाहि ॥ मन कु कछु उपजाब विजोग ||५४६४ || मेरा भाई रूस के रह्या लखमण उठो सुणु दे कान चलो कहीं रहिए वनमांहि खोटा वचन कहें सब लोग बांधि पोट कांश परि हारि । मारग गहियो तहां उजादि ॥ मनमें किया श्रति उपाव | सनांन करो तुम लखमरण राव || ५४६५ ।। वहा चउका ऊगरि बैंठारण करि, किया उबटर गात ॥ सनान कराया मृतंक कु रघुपति अपने हाथ ।। ५४८६ ।। } चौपई वस्त्र पहराए उज्जल वरण । अवर भले साजे आभरण || पंचामृत से बाल भराइ । विनय करि बोले रघुराई ।।५४८७।। करें ग्राम लखमा मुख देइ । वह सुतक कैसे करि लेह || मुख परिषालं विन धरणा । लखमण मानौं मेरा भरा ||५४८८||

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