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पद्मपुराण
ताओं परि दिक्षा का भेष । बारहै विष तप करें प्रसेष । भव जल तिर नै पाई मोभ । जनम जरा के टूटे दोख १५१८१॥ रामचन्द्र मन्दिर मां गए । राजसभा में बैठत भए ।। राणी सब प्रतहपुर आइ । पूजा दान करें बहु भाइ ।।५१८२।।
सोरठा ल्याए प्रातम ध्यान, मोह माया सम परिहरी ।। नीता सत पांग, सुग्गर नहिरी | इति श्री पयपुराणे सीता प्रथज्या विधानक
१०१ वां विधानक
चौपई सोता की पूर्व कथा
अंणिक नृप कर जोडे हाथ । फेर धरम सुणावो नाथ ॥ सवनांकुस गरभ स्थिति करी । ते मुझ सकस मुगायो चरी ।।५१८४।। स्यंघनाद बन भय को ठोर । तिहां सीता कु प्राए छोडि ।। महा बिलाप मीता ने किया । कवरण करम से ए दुख भया 11५१५५।। सिद्धारपसे बहूत हित हुवा । के पहिला के सनबन्ध नवा ।। सिद्धारथ बहु विद्या पढाई । से सब कहिए ससंय जाई 11५१८६॥ श्री जिन की बानी सब हुई । भव आताप सगसी बुझ गई ।। गौतम स्वामी निरणय भरी । सभा मध्य श्रोणिक भी सुणौ ।।५१८७।। अंबुद्वीप में क्षेत्र विदेह । फिकदा नगर बस बहु गेह ॥ रतियरधन राजा सुपुनीत । सुदरसना राणि सुपुनीत ॥५१८८।। वाक गरभ पुत्र दोई भए । प्रीतकर हीतकर सुख किए ॥ दिन दिन ब. सयाने होई । कुल मंडरण बालक ए होई ।।५१८६।। सरव गुपति राजा मंतरी । राज विभूति तिहां अति जुडी ॥ बीजावल प्रधान की तिरी । उसके मन उपजी मति बुरी ।।५१६०।। रतिबरधन सू संगम करौं । अपणों जनम तब जाणलं खरी ।। राजा वन क्रीडा को चला 1 सरद गुपति मंदिर हितो भला । । ५१६१।। ता मंदिर तलें वंठा प्राइ । बीजावली उझकी झरोखे जाइ। दोन्ह की हुई दिष्टि व्यार । मुख सों बोली पाप ब्योहार ||४१६२।।