Book Title: Muni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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मुनि सभाचं एवं उनका पत्रपुराण प्रद्युम्न एवं संबुकमार के पूर्व भष
विप्र संन्यासी तपेसुरी । अतीत अनागत लघु अस्तरी ।। इनके मारपां उपजे पाप । भव भव सहे दुःख संताग ।।५२७५।। जइ तेरा मन में हैं बैर । पहिले तू हमकू मारि करि ढेर ।। ५ऊ । इन मार मह । दो सा बटग उन्नहि ।।५२७६।। बांध्या यक्ष दोनु काका हाथ | उभा द्विज बंठा मुनिनाथ ।। प्रभात समै जागे सब सेठ । लघु वृद्ध बदमा चाल्या घेठ ।।५२५७।। नमस्कार करि पूरा करी । वा मुनि में सच ही की दिष्ठ पडी ।। मगनभूत वायुमूत विप्र । हाथ जोडि कर नागेस पुत्र ॥५२७८।। ऊंये कर दोन्यु' का बघ । उभा इम दोन्पु द्विज अघ ।। सती जती बंठा सुअडोल । गहि मौन वोले नहिं बोल ॥५२७६।। जे भावं ते गारी देह । रे पापी कीन्हीं कहा एह ।। मुनिवर बंट वन में प्रांनि । इनके चित्त निरंजन ध्यान ।।५२८०॥ किसही सु नहि करते नोल । सव ही नै दई मारग मोष्य ।। मुनिवर • तुम दीना दुःख । तसा अब देखउ परतष्य ।।५.२०१६॥ बहुत लजाए बाभण दोइ । मिग धिग कह जगत सब कोइ । सोमदेव अगनला माई, मुनिवर के बे लाम्या पाई ॥५२८२॥ म्वामि नमुहूं दोउ कर जोडि । हमनें दिखणां यो इन हैं छोडि ।। पुत्र भीख दीजे करि मया । तुम प्रभु पालो हो अति दया ।।५२८३।। मनि बोल दंपप्ति सों बाल । हमारे नहीं क्रोध की जात ।। विनती कर जव्य सौं घगी। अतिरिगति जष्य असी सुणी ।।५२६४।। कहे जय ए पापी दुष्ट । इनां दीया है साधनइ दुःख ।। जैसा सु बोले तैसा सुगणं । जैसा चावं तैसा लुणे । ५२८५।। ज्यौं दरमा मां देखें कोह । जसा चितं तैसा होइ ।। जे मुख को टेढा करि देखें । तैसा ही ताम दरसन लेख ॥५२८६।। जे देखई सुधा करि बदन । तैसा तामें हैं दरमन ।। ए हैं पापी महा अम्यान । इन न छोड़ अपने जान ।।५२८७।। मुनिवर बात जष्य सू कहैं । सुष्यम बादर करुणा चित गहैं ।। ए दोन्यू पंचेन्द्रिय जीव । छोडो वेगि इनकी ग्रीव ।।५२८८।। जीव दया कारण प्रत करें। हिसा त नित वासर डरै॥ जनमें रहूँ परीसह सहैं । से कसें जीवां ने दह ।।५२८६।।

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