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पपपुराण
अतिरिक्त छोड़ो तुम यक्ष | इन दोन्यु सो न करो कुन । विप्र छोडि दिया तिण बार । उनौं विप्र कुं कराया नमस्कार ॥५३६०।। तब अणुव्रत विप्र कू दिया । जैनधर्म निसचे सू किया ।। घरम पुराए हैं मन ल्याइ । खोटी क्रिया विष दई बिहाइ ।।५२९१॥ जीव दया के पाले भेद । पसभ करम का कीया छेद 1। सोमदेव प्रगनिला नत गह्मा । उनपे व्रत न जात्र सह्मा ।१५२६२।। मरि करि भ्रम्या बहत संसार | दोन्यु विप्र स्वरग सिंह बार ।। मुगति प्राव प्रजोध्यापुरी । सुभदर दत्त राजा रिध जुरी ।।५२६६।। घारणी राणी के गरभ प्राइ । पूरणप्रभ मानभद्र जाइ ।। पाई वृद्ध सयार भए । राजा के इहै उपजी हिए ।।५२६४|| उन दोन्यु को दीयो राज । प्रापण किया धरम का काज ।। बहुत दिनां भुगते सब देस । मुनिवर बल किया प्रवेस ।।५२६५५ । मुनि नरेन्द्र दरसन कुपले । चिंडाल पास कुकरी गले ।। उनकौं देख अपना नेह । भेटच्या चाहे उनसों देह ।।५२६६।। सन में सोच कर बहु भाइ । चलें पूछिये मुनिवर जाइ ।। गये साथ पै करि इंडोत । राजा पूछी बात बहुत ।। ५२६७।। स्वामी एक प्रचंभा सुरणी । इनहे देखि मोह ऊपत्यो घणु ।। कवरणएकवरण हम जात । ए प्रतक्ष्य चिडालहै पांति ।। ५२६८।। जिह के छियां लीजिए सुचि । तासु होय मिलण की रुचि ।। बोले ईह सोमदेव विप्र । प्रगनिलाए ए सुनी अगित ।। ५२६६।।
पूरव भव का माता पिता | ता कारण मोह की लता ।। एक मास रही है प्राव । चंडाल कूकरी संन्यास सिंह प्राय ।।५३००।। काल पाइ नंदीसुर द्वीप । दोन्या भए देव सु सभीप । दोई भूपति नई धरमणां । जैन धरम विव पालै घणा ।।५३०१।।
देही छोडि सौधरम विमाण | तिहां ते चए अयोध्या प्रांन ।। हेमनाभ राजा कई गेह । अमरावती राणी रूप की देह ।। ५३०२।। ताकै जा अति प्रतापी भए । हैमप्रभ संयम बत लिए । राबभार मघु कीट में दिया । श्राप गुरु लिंग संयम लिया ।। ५३०३३॥