________________
४४२
पापुराण
प्रारजका हरिकांता के पास 1 दिक्ष्या लई मुगति की प्रास ॥ कर तपस्या वन में जाइ । मास उपवास पारणां कुभाइ ।।५१००।। तपरि देह जोजरी करी । समाधि मरण कीया तिह घडी ।। पहुंची ब्रह्मोत्तर के थान । देवंगना भई सुजान ।।५१०१।। संभु कुबर सुरण कर विजोग । वेगवती का व्याप्या सोग । अंत समझ करि सोच्या ग्यांन । दिध्या लई जती ढिग प्रान ॥५१०२१॥ स्वयंज को कीया सरन का राव । प्रभासकुद भया तिहीं नोज || प्रभासकुद को दीपा राज । पिता किया दिगंबर साज ।।५१०३।। प्रभासद राजा मति बली । प्रजा सुखी मानें सब रली।। एक दिन विचित्र सेन मुनि पास । मुणियो घरम कृति को नास ।।३.१०४।। जोडया राज भोग संसार । विना लई संयम का भार ॥ तेरह विघ सौं चारित्र घरघा । अठ मास पारणां करपा ॥५१०५५१ इह विष सौ करं तपस्या भाप । जनम जनम का टूट पाप ।। राग दोष तजि प्रातमध्यांन । ग्रीषम इति परबत पर प्रान ।।५१०६।। सिला हैड ऊपर तप सूर । चार मास तपै इह विष पुर ।। बरखा फास रूख तल जाइ । तीन काल तप सौं मान ल्याइ ।। ५१०७।। मांचर चू'टै देही दहैं । बेलि लपट देही से रहैं। सीयाल हेमांचल ठौर । गंगातट सीत को जोर ।।५१०८।। बहुत बरस्त्र ऐसा तप किया। कनक प्रभा खेचर माढ्या ।। समेद सिखर जावे पा जात । ताहि देख चित्या इह भात ।।५१०६।। धन्य इग्है खेचर गमन प्रायास । जो मन चसं तो पुरं पास ॥ जहां मन कर तिहां यह जाइ । धन्य है विद्याधर एह राइ ।।५११०।।
मेरे तप का एह फल होइ । मो सा बली न दूजा कोइ ।। सीम खंड का पाऊं राज । विद्या फर करौं मन काज ।।५१११।। देही छोडि शांति कुमार । रतनश्रवा घर लियो अवतार ।। केकसी गरभ दसानन भया । पाछ रावण नाम इह थया ।।५११२।। धनदत्त जीव भयो रामचन्द्र । बसुदत्त लछमन वली मनंद ।। सभध्वज भया सूग्रीय । जगवली ते भभीषण जीव १५.११३।।