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मुनि सभाव एवं उनका पमपुराण
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हेमवती परनाई नारि । स्वयंभ पुत्र जनमीया कुमार ॥ श्रीभर्स पुरोहित दयावंत । स्वस्तमती मत्री महागुनवंत ।।५०८६॥ मृगनी जीव भ्रमी बहु जौनि । भई हयनी गंगातट गौन ॥ कईम माहिं हथनी थकी । उहां से बाहर निकाल नहीं सकी 1॥५०८७|| व्याकुल भई मरण के भाव । तरंगवेग विद्याधर नाम ।। प्राकासगामनी गया था जात 1 याहि देखि करणां भई गात ।।५ ।। उतरि भूमि पर नवकार । सरणा दए च्यार परकार ॥ हथनी मरि प्रोहित के ग्रेह । पुत्रो भई सकोमल देह ।।५०६६।। हुई वृष भई संभाल । मुनीस्वर देखि हंसो वह नाल || पिता कहें उसने समझाइ । [ मुनीस्वर ममता नहीं काए ।।५७६.॥ इन हत्या होय बहु पाप । भव भव सहै दुःस्त्र संताप ।। मंसी सुणी पिता की बात । मन में ग्यांन घरचा बहु मांत ।।५०११॥ सुण्या धरम जिन मारग गह्मा । दिढ सेती समकित वह लह्मा ।। कन्या मई बिवाहन जोग । रममा स्वयंवर पाए लोग ।।५०६२।। स्वयंमु कुयर इह इछा घरै । जे कन्या मुझ कों ही बरं ।। प्रोहित कहै कान्या जाकु देव । सम्यक्त कर जिणेस्वर सेव ||५०६३|| संभ कुवर मिस्त्याती घणा 1 प्रोहित सोश चित प्रापणा ।। इह राजा मैं मरगणे बसू । चे इह कन्या प्रवर घेयू १५०६४।। या सेती मुझ बांध बैर । अब छिन मांहि फरू कछु फेर ।। मंडप दूर करना सिंह बार । सब कुवर मन बैर अपार ॥५०६५।। इक दिन मारया प्रोहित श्रीभूत । छोडे प्राण सम्यक्त संजुत्त ।। ब्रह्मोसर पाइया विमाए । उह सम सुखो न दूजा जान ।।५०६६॥ वेदायसी प्रोहित की सुता । व्यापी ताहि काम की लता ।। वेवाबती कर तब सोष । संभकूमर सो वांछ सचि ।।५०६७।। सुपना में भुगतै वह भोग । जागी तब उसे व्याप्या सोग । पिंग विंग ए पांच इन्द्री के सुख । स्यण भ्यंतर फिर होय दुःख ॥२०६८।। भो कुतो उपजी थी कुधि । विषया मिलाय गापा चिस ।। प्रपणां मन बहुत ही भिष्ट । परो ध्यान जिन समकित दिष्ट १५०६ER