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मुनि समाचंद एवं उनका पयपुराण
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निसत्राने' दिव्या लई । राजविमति वृषभध्वज में दई। वृषभध्वज पदम रूचि । मुगौं राज कर मन सुचि ।। ५०५७|| पहली बरी घरम की साइ । मुम्ब मृगौं सब मन भाइ ।। वृषभध्वज राज करथा बहु वर्ष । समाधिमरण कीयों बहु हर्ष ।।५०५८।। ईसान स्वर्ग परि हवा देव । भूगरौं सूख किनर करें सेव ।। पदमरुचि घरम के ध्यान । ईसान स्वर्ग में पाया विमान ।।५.५.६।। विजयारघ पच्छिम विदेह । नंदालत नगरी उत्तम गेह ।। नंदीस्वर तिहां मपती । कमलप्रभा गणी सुभ मती ।।५०६०।। पदम चि जीव गरभ अवतस्या । नयणानंद नाम तिहां धरना ।। नंदीस्वर धरि संयम भार । नयनानंद नै राज दिया सिह बार 11५०६१।। बहुत दिघस उन कियो राज । सप करि पाप संभाग्या काज ॥ महेन्द्र स्वगं पाया सुख ठाम । उहां ते चया खेमांकर गाम ।।५०६२।। मेरु सुदरसन विमल नाहन धूप । पदमावती राणी सस्वरूप ।। श्रीचन्द्र जन मियां कुमार । पिता ने सोप्या सब संसार ।।५०६३।। विमल वाहन लिया संयम योग। श्रीचंद निहां भोग भोग ।। समापिगुपति मुनि मागम भया । ताकै संगि सिष्य तप किया ।।५७६४।। वन में करे तपस्या घणी । इनकी मूरत नगर में सुरणी ॥ चले लोग बहु मुनि की जात । बाजंतर वाजें बहु भांति ।।५०६५।। राजा जब वाजंतर सण्या । मन में सोष किया तम चरणां ॥ नहीं कोई तीरथ नहीं कोह परब । तिहां बली परजा यह सरव ।।५०६६।। किकिर प्राइ जणाई सार । मुनिबर पाए वन है मझार ।। दरसन कौं परजा इह चली । भूपति सुरिण उपजी मन रली ।१५०६७।।
मुनि के पास जाना
उतरि स्यंघासरण करी डंडोत । नरपति चल्या तब लोग बहोत ॥ दरसन पाइ परदक्षनां दई । नमस्कार करि पूजा भई ।।५०६८।। पूर्छ घरम जोष्टिं दोई हाथ । वारणी कहो श्री मुनिनाथ ।। मुनि समाधि कहै वखान | प्यार बेद के उत्तम ग्यान ।।५०६६।। प्रथमानुजोग प्रथमही जान । करणानजोग दूसरा बम्हारग ।। चरणानजोग दृश्यानजोग । इणके भेद सुरणे सब लोग ।।५०७७॥