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मुनि सभाचंब एवं उनका एमपुराण
मैं मयू मुनि ने लगाया घोष । कुमति ग्यांन का हुवा पोष ॥ प्रब इह पाप टर किंह भांति । मैं यू ही दूःख दिया मुनि नाथ ॥५१४३॥ रिष निंदा है सब से दुरी । पाप पोट प्रपणे सिर घरी ।। कठिन करम में किया प्रथाइ । अंसा दोष मिट किह भाइ ।।५१४४।। समझि जैन की दिव्या लई । सप करि फिर उत्तम गति भई ।। पूरन करम उदय भया भाइ । पाया कष्ट असुभ के भाइ ।।५१४५।। सीता सती दिढ राख्या सस्त । फिर पावगी पंचम गत्ति ।।५१४६।।
कवित्त पर निंदा नहीं करें साध जस ही फमाण ही ।। मिथ्या वधन नहीं जुगै, ताहि उत्तम जन मानही ।।५१४७ सील संयम दिबह घर, दया करै मन ल्याइ ।।
परकारज परमारथी, मोक्ष पंथ सो लहाइ ।।१४।। इति श्री पापुराणे सरवार रामचंद्र पूरव भव करणनं विधान
१०. वां विधानक
प्रबिल सकल सभा मुनि पास भवांतर सब सुने । जनम जनम के मेद, सकल भूषण भने ।। वैराग्य भाव भया लोग, नाम किहां लौं गिनई 1 रवि का होत उद्योत, अषकार हनें ॥५१४६।। तिमिर जु गया सब भाजि, किरण रवि को जगी । घर वाहर उछोत, प्रधकार कहीं है नहीं । तम जु गया सब भाजि, किरण रिव सी जगी। घर बाहर उद्योत, सबै सोमण लगी ।।५१५०।। जे दिष्टांस प्रवीण तिनई जाणं भली ।
परिहाजे जे पंघासुति हीण उनी कं चित मिली ।।५१५१॥ कृतांस वक्र भवांतर धूझि । ब्योरा सुरिण प्रतरगति सूझि ।। मन बैगम धरा बहु भांति । रामचंद्र सों जोड़े हाथ ।।५१५२।। जीव भ्रन्या चढंगति में मादि । समकित बिना जनम सब बाद ।। भ्रमत भ्रमत नहीं पायी प्रत । मध हुँ थनया सकती नहीं हुंत ।।५१५३।।