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परम्पराग
समा घणी तास के साथ । देखें लोग घुणे सब माथ ।। किस पर कोप्या रघुपति प्राज । कृतांतवक पाया दल साज 11४५६१।। नमस्कार करि ठाडा भया। रघुपति बचन मानि कर लिया ।। सिघनाद बन भयानक घणां । तिहाँ मानुष्य न कोई जणां ।।४५६२।। सीता को करि मात्रा भाव | तिहां छोडि फिर ल्याबो मति ना ।।
कृतांतवक सब गया सीता द्वार । माता तीर्थ चलो मोहि लार ।।४५६३।। सीता को यात्रा के बहाने से ले जाना
समेदशिखर तीरथ निवारण । पुजा करो जिनेस्वर थान ।। जैसा कर्म उद होवे प्राय । तैसी तेसो देख ठाइ ॥४५६४॥ रहरा रली सू सीता चली । सब कुटुंब सू तब ही मिली ।। रथ परि चलि चली समेद । देखें सकुन विचार भेद ।।४५६५॥1 सुका वृक्ष परि बैठे काग। चुच मूडपरि पटकाण लाग ।। देखे बुद्धिया मारग माहि । बाल खसोट वैसे छांह ।।४५६६।। सकून विचारई सीता तल । हम तीरथ कारण को चल ।। कहा सकुन करेंगा मोहि । कछुचन मन घरघा न रंच ।।४५६७।। अग्रे देखें पर्वत झरई । मानू रुदन सब कोई करई ॥ कहि स्खलनलाट जल बहै । देखि कख तिहां माश्रम गहै ।।४५६८।। महा मंग तिहां अगम अथाह । जलचर जीव सुखी वन मांहि ।। तटपरि ऊंचे सोमैं रूख । सीतल पवन सं भाज दुःख ।।४५६६।। वनफल उत्तम लागे घणे । निरमल नीर सोभा पति रणे ।। गडगडाट सू उल्लल नीर । देखत ताहि रहै नहीं धीर ।।४५७०॥ स्पंघ नाद गंगा पार पर्ण । तिहां नाहि काह की सणं ।। एक नाम भगवंत सहाइ । और न कोई है इस ठाइ ।।४५७१।। ऋतांत अक तिहां रोवै प्रान । हाथ मुड धरि सोच ग्यांन ।। सीता माता अति धर्मेष्ट । इनकी फिर उदै हुवा कष्ट ॥४५७२।। घसी महा भयानक ठौर | बन का जीब कर तिहां सोर ।। मैंने भाग्मा प्रमुजी की पाइ । सीता कू ल्याया इस ठाद ।।४५७३।। कृतांतवों सीता कहे । सूर वीर धीरज को परे ।। जई तु डानस डार तोडि | तो हम मन दिवता रई कोडि ।।४५७४।।