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मुनि सभाव एवं उनका पद्मपुराण
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लवकुश की विजय
बहुत विघन प्रथवी धर पान । देई भेट राख्या सनमान ।। भुगति भोग बीसे बहुद्यौस । बिदा भए बाले मन होस ॥४७३७।। एक सहस्र राजा ने साथ 1 विजय देश सौ भूपति बोधि ।। पोदनापुर और बहु नन । राजा अणि मिले तिहा सग्र ।।४७३८।। गिर केलास उतारी संन । नंदचारजीत भए सुख चैन । महा गंग तें उतरे पार । बहुत तने कीया निरधार ।।४७३६।। देश परगना अने बह गाम । साध्या घणां राजा के नाम ।। उहां ते बल देस प्रापरणे । नरपति साथ लिए निज धरणे ।।४७४०।। पुडरीवनी रहि कोस सात । सतख वैठि सीता मात ॥ उड़ी धूल छाये प्राकास 1 पूछ सीता सस्त्री जन पाम ||४७४१६ वे कहैं कोई नरपति आय । तात रज उई बहु भाइ ।। वनजंघ में पहुंची खबर । लवनांकुस मारे अति गवर ।। ४७४२।। जीत्या देस परगने घणे : बहतराय सेना संग बणे ।। सीता सणी पुत्र की बात । उपज्या मुख पर हरपित गात ।।४७४३।। वनजंघ प्राण्या इह दई । हाट बाजार छावो सब नई ।। गली गली हवा छिड़काव । कीया महोछव राख्या भाव ॥४७४४।। सीता कू किया नमस्कार । बज्रजच मिलिया तिण बार ।। घरि घरि हुवा प्रति प्रानन्द । ए प्रतापी हैं ज्यों सूरज चंद ।।४७४५।। निरभय कर निकंटक राज । भई जीत मनवांछित काज ।। बजहंघ का प्रगट्या प्रताप | सुख माही भूल्या दुस्ख संताप १४.७४६ सोता रहैसी पुओं में देखि । मन संतोप्या लस्यण गुण प्रेषि । सकल लोक परिजा प्रति सुत्री । तिहपुर कोई है नहीं दुखी ।।४७४७।।
. हा पुण्य बडो तिहं लोक में, धरम भाव भरि चित्त ।। सतः कीरत प्रागली, घरमै सुख अनंत ॥४७४८।। इति धी पापुराणे लवनांकुरा दिग्विजय विधानक
६४ वां विधानक
चौपई राम लखमण चित प्रांशी सिया । मोह उदय वे पाकुल भया ।। कृतांतवक्र को दे उपदेस । सीता सुष लेहु फिरी तु प्रदेस ॥४७४६।।