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मुनि सभासद एवं उनका पपपुराण
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फिर पाया लछमन कर चक्र | मन में सोचें लछमन सक्र ।। अनंतवीरज स्वामी ने कहा । कोटि सिला उठावै जो इहा ॥४८१३।। हूं चारायण त्रिखंडी ईस । मेरी कत्रण सके करि रीस ।। भूचर षेचा दानव देव । सब मिलि करि हैं मेरी सेव ॥४८१४।। उनका वचन न झूठा परे । चक्रप्रति कोई अवतरं ॥
तात चक्र कर नहीं घाव । अब हूं कहा करू उपाय ।। 6८१५।। नारव द्वारा लवकुश का रहस्य खोचमा
नारद सिधारथ दोउं प्राय । राम लक्षमा सू बहैं ममझाय ॥ ॥ दोन्यु सीता का पूत । बलपौरिष दो मंयुक्त 11४८ १६।। जब तुम सीता दई निकाल । बनजंघ आया भूपाल ।। धरम बहिन करि वह ले गया। नगरी का लोग हरपित भया ।:४८१७।। प्रसुति भई तिहां पुत्र दोड जण्यां । जनम महोछत्र कीने घरमा ।। लवनांकुस दोन बलवंत । इन सम अवर नहीं सात || रामचन्द्र लछमन ने सुरणी 1 अपणी निंदा कीनी घरणी ।। मक उपजी महा कुबुद्धि । करी न कछु न्याय की सुधि ।।४।१९।। सीता कूरात हुवा सहाइ । वह पाप भया हमक आय ।। सीता प्रत निकाला दिया 1 तो मान भंग हमाग भया ।।४-२०।। एक दोख चुक्या था नहीं । दूजा पाप प्रब हवा सही ।। जे अझ थे ऐसे पूत । ती दुख होता हमैं बहुत ।।४।२१।। ए थे क्षेत्र कला के सिसु । गोत बावतई हुवा न सुख ।।
उतरे रम ते सनमुख चले । दोन्युपुत्र प्राइ के मिले ।।४६२२॥ लव कुश द्वारा पिता की वंदना
लगे चरण रघुपति के पुत्र । कंठां विलंबन लेय विचित्र ।। धन्य दिवस माज की घडी । पिता पुत्र मिल्या हुंडी हुंडी ।।४८२३३॥ विमारण चढ़ी सीता इह देखि | मन में भानन्द भार विसेष ।। जाण्यां पुत्र महा सपूत । अपरणें मन हरखित बहुत ।।३८२४।।
पुत्र प्राकर्म कु देख करि, सीता चित्त हुलास ।। पुडरीक फिर के गई, पुगी मन की पास ।।४।२५।।