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मुनि सभाचंच एवं उनका पपपुराण
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प्रोपई
राम द्वारा पश्चाताप करना
रामचन्द्र नै देखी चिता । सीता जन तो लाग हत्या ।। पछी प्रादि तिहां सूक्ष्म जीव । भया धूम पाप की नींव ।।४६२१।। स्वोटी बात मुख ते मैं कही । अमी कदे हुई थी नहीं । कठिन पइजमै बाधी माज । जे पर मसूर ग़ाख का १२२।। दोइ घेर यह विछड़ी सिया । बर मिलाग विधाता किया ।। अब यह जलं पिता में जाइ । फेरि लई मीना विह भाइ ॥४६२३।। पहिले पई चिता में अाप । माप सन्या न जाय बिलाप ।। ज्वाला फरिन जोजन के फे। मीना खडी ज्यों पर मन मेर ॥४६२४१। पंचनाम हिरदै संभाल । जिन श्री सुमरे तिहकाल ||
सरख भूषण को करी नमस्कार । मन बच काम सत रहे हमार ।।४६२५11 अग्नि परीक्षा में सफलता
अगानि माझ से जो जवरू । झड हैं तो त्रिगण परि जल्लू ।। पंचनाम पति चिता में पड़ी । सीतल भई अगनि तिह घडी ।।४६२६|| उमच्या जल धरती में फिर । बहैं लोग धीरज नहीं घरै ।। विद्याधर गमघा आकाश | चहथां लोग बहै बहु त्रास ||४६२७।। सीता का गुण सुमरै लोग । हम सीता कु किया वियोग ।। झूठे वचन लगाया दोष । कैसे हम पावा संतोष ॥४६२८|| मीता सूमरण चित्त में प्रांन । उवरै सकल सीता के ध्यान ।। निघट्या नीर भया सुख चैन । कह सकल प्रस्तुति के बैन ||४६२६॥ जिहा थी पाग निकूड की ठौर । वण्या सरोघर बैंठक और ॥ फूले कमल भंवर गुजाहि । भले विरख तिहां सीतल छाह ।।४६३०।। कंचन पाल सरोवर बणी । हंस चकोर तिहां सारस घणी ।। जलचर जीव पंखी हैं तिहां । रतन स्यंघासन सीता जिहां ।।४६३१|| जै जै सबद देवता करें । पुहपवृष्टि बहुत ही पडें ।। लवनांकुस सरवर में घंसे । मन प्रानंद दोनू हंस ।।४६३२|| नया अनम माता का भया। जल के बीच गए जिहां सिया ।। नमस्कार करि लागे पाय । सीता भेटी हिए लगाय ॥४६३३।।