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मुनि सभापंच एवं उनका पयपुराण
जिसकी माया न छट पडी।कसे दिव्या पालौं खरी ।। सकल भूषण बोल सुविधार ! तुम हो मुक्तिगामी भवतार ।।५००१।। कोई दिन तुम भुगतो राज । पाछ करो पालम काज ।। सपर्ज केवल पावं मुकति । सुर नर सकल बरंगे भगति ।।५००२।। इतनी सबक निसचे भई । सेवा रामचंद्र मन दई । सब काहु जाण्यां जगदीस । सुर नर सकल करेंगे भगति ।।५००३।।
डिल्ल श्री रामचंद्र सुनि धरम महिमा करी जैन धरम सुचित्त रहै पल पल पड़ी। करई सेक सब लोग श्री रघुनाथ की
साई तप वन माहि सुता जनक राय की ।।५००४।। पति भी पनपुराले सीता विल्या राम धरम अब विधान
९६वां विधानक
चौपई विभीषण द्वारा प्रश्न
भभीषण बोल दोई कर जोडि ! कहो परम बारगी बच होरि ॥ मेरे मनका मिट संदेह । राम लखमण · घणां सनेह ।।५००५१ किरण कारण पाया वनवास । दंडक बनमें रहै निरास ॥
रायण पाई विद्या धनी । चार वेद ग्यानी भर गुनी ।।५००६॥ विद्याधर से सब प्राइ । तीन खंड के रावण राइ । जा सनमुख जीत्या नहीं कोई । चंद्र प्रादि मान भंग होई ॥५००७।। ज्ञानवंत जाणं राजनीत । परनारी परि डोल्या पित्त ।। सीता को हरि लंका गया । ता बहुत उपद्रव भया ।।५ ।। लक्ष्मण के करि राबरण मुना । पहिला बंध चोध्या नवा ।। मीता पतिव्रता प्रसतरी । इह को सदा बिपत्ति में परी ॥५.०६।। किह कारण चरचा करी लोग । राजि भोग में भए विजोग ।।
इनके भव भाखो समझाइ । मेरे मनका संसय नाइ ५०१०।। सर्वभूषण द्वारा विस्तृत वर्णन
सर्वभूषण बोले भगवान । बारह समा सुगदे कान ।। जंबूद्वीप मई क्षेत्रवि भरत । दरूपण वोह नगरी समकिस ।।५०११॥