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पपुरास
सम्यक्त सु पाले चारित्र । से मुनि कहिए सपा पवित्र ।। जोत जोति मिल जब माइ । तब वह भय। निरंजन राई ।।४६८८|| सम्मक बिना करें इह तप । ग्यान कहें के सुमर वह जपं ।। मिथ्या सौं ल्यावै वे पित्त । उनको होब नरक की यित्ति || ४६८६।। प्रातम ग्यान दीपक को जोइ । पावं मुगति सिघ तब होइ ।। करम सफल हो जावे दुरि । रहै ग्यान नित प्रति भरि पूरि ||४६E0||
जे जीन हद समकित धर, मिथ्या धरम निवार ॥ निसचे पाय परमपद, भुगतै सुख प्रपार ||४६६१||
चोपर्ड
जीव तत्व संसारी दोड । भन्य अभष्य उभय विध होइ ।। प्रभव्य तपस्या कर अनेक | काया कष्ट बिना विवेक ।।४६६२।। जै पावै नवग्रीवक थान । बहुरि भ्रमै भवसायर प्रान ।। मुकति न जान पावई निगोद | प्रभव्य न सी पबरहै प्रमोद ॥४६६६||
भव्य जीव समकित दिन धरै । ले चारित्र भवसायर तिरं ।। लहै मुक तिहां सुख निधान । दरसन तहाँ अनंत वल ज्ञान ॥४६६४|| पुदगल है वीजा तत्त्व | कासन मध्य होई सब थिप्ति ।। दया भाव पूजा संजुत्त । मानव देह विना न होइ मुक्ति ॥४६६५|| प्राश्रव होइ करम इह भाति । ज्यों सस्वर में नीर बहास 11 नधि पाल बघ सिहां नीर । वरस घनहर गहर गंभीर ४६६६|| संवर पंचम तत्त्व का भेद । पालई कोडि कर जब छेद ।। बघता नीर सकल बह जाइ। जो कछु पहिले रहे तां ठाइ I४६६७|| निर्जरां तस्व षष्ठमा जान । सुक नीर जब भान तपै पान । असें करम निर्षरा होइ । मोख तत्त्व सातवां सोइ ॥४६६८) रामचन्द्र सुणि बोले बैन । सबसे उत्तम समझो जन ।। सकल बात को मिटयो संदेह । झूठी माया मारणी एह 11४EREIL जीव का सगा न संगी कोइ । धर्म सहाई जीव को होइ ।। राब विभूति तों सब नारि । मोया लछमन मोह अपार ।।५०००।