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मति सभाचंद एवं उनका पद्मपुराण
लखमण सत्र घन बैठा तिहां । लवनांकुस मदनांकुस जिहो । प्रभय निदान जोरै हाथ । प्रकासो धर्म श्री मुनिनाथ ॥४६४८।। सप्त तत्त्व के सूक्ष्म भेद । सत्र संसम का होय खेद ।। सदगुरु बचन सुरग मन ल्याइ । ते निश्यै पंचम गति जाय ॥४६४६ ।।
सोरठा मुनिवर ग्यान अनन्त, दरसन ग्यान चारित्र सौं 1॥ कत न आवै अन्त. वाणी भेद समझामणी ।।४६५011 सायर अगम प्रथाह, ताहि कवण विध नि सके ।। ज्यू अंजुलि भरि वाह, ताही किम सरभर करें ।। ४६५१॥
चौपाई दरसन ग्यांन चारित्र संजुक्त । प्रलक्ष वाल कहगे की सक्ति ।। श्रुतग्यानी हैं वेद विचार । ते कहा जाग कहें निरधार ।।४६५२।। में मति थोडा का बखाण । अणुमात्र में भाख ग्पांन ।। जीव तत्त्व सब सौंज अनूप । एक सिध एक संसारी रूप ।।४६५३।। अजर अमर सिद्धाने सिध । भ्रम जीव संसारी विविध ।। स्वरम मध्य पाताल खास । चहूंगति भ्रम्या न पुजी प्रास ।।४६५४।। क्षेत्र काल भाव तप होइ । समफित सों दिन राल कोई ।। संगति साध लहैं तब ग्यांन । ते जीन पावं निरवांन ।।४६५५|| कर धरम पावै गति देव । मध्यलोक मानुष्य सुख एन ।
तिरजंच जोनि में दुख धग मूल । पापै लहै नक अम्ल ।।४६५६।। नरकों के दुख वर्णन
सप्त विसन का सेवण हार । सात नरक दुःख सहे अपार ॥ रस्त शर्करा बालुक पंक अरु घूम । तम महातम ए सानो भूमि ।।४६५७।। हुंडक देह काया बहु वडी । मूख पियास सीत उसन बड़ी ।। मुस का छिद्र हैं सुई समान । दुख का पंत न जानु समान ॥४६५८1 ज्वारी बोर का काटे हाथ । परदारा ताती फुतली साथ ॥ सुरा पनि कु तातो रांग । प्राखेदक का काट प्रांग ॥४६५६।। वैतरणी ताता है तिहाँ । डास पकडं उनु नै जिहाँ । मास प्रहारी मुख ताता पर । छेदन भेदन कीजिए खंडो खंड ।।४६६ना