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________________ मुनि सभासद एवं उनका पपपुराण ४२१ फिर पाया लछमन कर चक्र | मन में सोचें लछमन सक्र ।। अनंतवीरज स्वामी ने कहा । कोटि सिला उठावै जो इहा ॥४८१३।। हूं चारायण त्रिखंडी ईस । मेरी कत्रण सके करि रीस ।। भूचर षेचा दानव देव । सब मिलि करि हैं मेरी सेव ॥४८१४।। उनका वचन न झूठा परे । चक्रप्रति कोई अवतरं ॥ तात चक्र कर नहीं घाव । अब हूं कहा करू उपाय ।। 6८१५।। नारव द्वारा लवकुश का रहस्य खोचमा नारद सिधारथ दोउं प्राय । राम लक्षमा सू बहैं ममझाय ॥ ॥ दोन्यु सीता का पूत । बलपौरिष दो मंयुक्त 11४८ १६।। जब तुम सीता दई निकाल । बनजंघ आया भूपाल ।। धरम बहिन करि वह ले गया। नगरी का लोग हरपित भया ।:४८१७।। प्रसुति भई तिहां पुत्र दोड जण्यां । जनम महोछत्र कीने घरमा ।। लवनांकुस दोन बलवंत । इन सम अवर नहीं सात || रामचन्द्र लछमन ने सुरणी 1 अपणी निंदा कीनी घरणी ।। मक उपजी महा कुबुद्धि । करी न कछु न्याय की सुधि ।।४।१९।। सीता कूरात हुवा सहाइ । वह पाप भया हमक आय ।। सीता प्रत निकाला दिया 1 तो मान भंग हमाग भया ।।४-२०।। एक दोख चुक्या था नहीं । दूजा पाप प्रब हवा सही ।। जे अझ थे ऐसे पूत । ती दुख होता हमैं बहुत ।।४।२१।। ए थे क्षेत्र कला के सिसु । गोत बावतई हुवा न सुख ।। उतरे रम ते सनमुख चले । दोन्युपुत्र प्राइ के मिले ।।४६२२॥ लव कुश द्वारा पिता की वंदना लगे चरण रघुपति के पुत्र । कंठां विलंबन लेय विचित्र ।। धन्य दिवस माज की घडी । पिता पुत्र मिल्या हुंडी हुंडी ।।४८२३३॥ विमारण चढ़ी सीता इह देखि | मन में भानन्द भार विसेष ।। जाण्यां पुत्र महा सपूत । अपरणें मन हरखित बहुत ।।३८२४।। पुत्र प्राकर्म कु देख करि, सीता चित्त हुलास ।। पुडरीक फिर के गई, पुगी मन की पास ।।४।२५।।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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