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________________ ४२० पपुराण अडिल्ल पडी लोय परि लोथ गिरथ चूट घने ।। कां कातर लोग नाम झुम का सुरक् ।। लई लत्री लोग जाहि कूल लाज है 1 स्वामी धरम को दित करें वे काज है ॥४८०२।। चौपई कहीं घायल घूमैं हैं घणे । कहीं सुभट झूझे हैं बणे ।। घड सिर पडे वेह ते लटि । लुटहा लोग करें हैं लूट ।।४८०४।। ग्यारहै सहरू राम के इमरांब । लवनाकुस सों धरि भाव ।। पवन धेगि मिले हणवंत । अवर गए बहुते बलबंत ।।४८०५॥ सोरठा देखो कलुका भाव, जीत्यां सुसब ही मिल ।। मित्र बिछटा सव जाई, हारि जारिण बिछुड़े सवै ।।४८०६।। इति श्री पमपुराणे लवनांकुस जुध विधानक ९६ वां विधानक ચૌr युद्ध वर्णन रामचंद्र लवनांकुस लडे । मदनांकुस लछमन सु' भिडे । कृतांतवक लडे बनजंघ । लाग्या घाव विराधित संग ।।४६०७|| तवं रघुपति समुझावं ताहि । क्षत्री रण छो. किंह नाहि ॥ मेरे रथ का हुवै सारथी । घांय बेग रचें भारथी ।।४८०८।। विराधित रामचंद्र रय बैंठि | पाए मारि मारि करि बठि ।। बचावर्त समुदावतं । छो. ज्यु घनहर वरपंत ||४८०६|| उततै छोडें गोली बाण । प्रकास चक्र लखमण कर तारण ।। उन सर छोड करी तब मार 1 उडया फिरै चक्र तिह वार ॥४८१|| चक्र सुदर्शन फेरि संभार । तामैं उठे अनि की झाल ।। गडगडाट दामनी उद्योत । बसौ दिसा सबको भय होत ।।४८११।। गहे धनुष कुमर निज हाथ । टूट बाण ज्यों एक साथ ।। नक जाइ प्रकमां वई । पुण्यवंत को भय नहीं हुई ॥४८१२।
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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