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मुनि समापंच एवं उनका पपपुराण
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लवकुश द्वारा युद्ध
जुध निमित्त उतरचा है प्राइ । वाका दल बल कामा न भाइ ।। रामचन्द्र लस्त्रमण ने सुम्यां । मन में सोच किया प्रति घणा ।।४७६१।। प्रेसा कुरण भूपति बलवंत । जिसका दल कहिए नहि अंत ।। वे चद्धि आए अयोध्यापुरी । ल्याई उणु मरण की घड़ी ।। ४७६२।। देस देस को लेस पठाइ । भूघर खेचर लिया लाइ॥ नारद लिया भावमंडल पं गया । सकल भेद व्योरा सूकह्या ।।४७६३।। भावमंडल सुरेण सीता विजोग । मनमें बहुत व्याप्या सोग ।। लषनांकुस का सुण्यां प्राकर्म । बहुता तरणी गुमायो भर्म ।।४७६४।। नरपति घणां उनां के संग । अजीच्या पति किया भान भंग ॥ भावमंडल मन हरष प्रति किया । चढि विमान पुंहता जिहां सिया
॥४७६५ पुंडरीक नगरी मो जाइ । बहन भाई मिलिया सुख पाइ ।। सगली बात कही समझाइ । कच्ख हर्ष कम बिसमै राइ ।।४७६६।। सीता कौं बैठाइ विमान । मगन मागं पहुंचाई जान ।। सुर मर देखें कोतिक प्राइ । दुई ठां सेन्या साडी जाइ ।।४७६७।।
राम लखमन सुभट, सधन बलवान ।। भूचर पेचर प्रथीपति, चढे बजाइ निसान ||४७१८।।
चौपई
विराधित हिरन केस सुग्रोव | नल नील अंतक घुज मीच !।
महीपति निकस्या उनु माघ । सिंघ गरुष्ट बाहन रघुनाथ ||४७६६।। वजन अरु भूपति घणे | वाने वारी अग्रे वणे ।। पड़ी मार चक्र प्रा यांन । रथ गिरे पाप भगवान ।।४०००। फिर संभालि रथ ऊपरि बढे । महा कोषवंत मन बढे ।। गोली सर ज्यों घनहरं धार 1 दोउद्या सेन्या होइ संघार ||४८०१॥ हाथी घोडे रथ सुखपाल | गडी लोथ झूझ भूपाल || पग धरणे कुरही न ठौर । स्लोपत सो रए भरधा बहोरि ॥४८०२॥