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पारापुरा
उन प्रसाद हम सुख में रहै । उनुके लोग बुरे सब कहै ।। तार्थ रहैं हम याही ठाइ । मुख सों राज करो रघुराइ ।।४८५३॥ फिर बोले विद्याधर वैन । कर प्रतिष्ठा पूजा जन ।। ता कारण पाए सब लोंग । चलो बेग श्री जिन जोग ।।४:५४||
सीता का प्रागमन
सीता चढी पहुँपक विमान | आई प्रजोध्या जव लोप्या भान ।। भई रमण तब प्राथम लिया । महेन्द्र बन में दासा किया ।।५।। बीती मिस रवि कीयो प्रकास । देखी प्रजोध्या सुख का बास ।। सीता संग सहेली घशी । झोला डोली बहु विध यणी ।।४८५६।। रथ पालकी प्रवर चकडोल । गज मवयंत चले भकझोरि ।। बाजे तिहां प्रानंद निसान | तास सबद मुख उपजत कांन ।।४५५५। बंभन बहुत वेद घनि करै । भाट विरद मुगा के मन हरै ।। सब त्रिय आई दरस निमित्त । भई भी गलिये बहुमंत ॥४-५८।। नमस्कार कर सब कोई । जै जै सबद दसों दिस होई ।। सुर नर किनर जय जय करै । पहप वृष्टि प्रथिवी पर परं ||VER६|| रतन वृष्टि बार सीता सती । पहंघी तिहां बैठे रघपती ।। सन मिल उठ करी इंडोत । लोगां प्रस्तुति करी बहोत ।।४६६०।। रामचंद्र की कुटी कठोर । स्यंघनाद बन आये छोर ।। तिहं वन वेरिन सर सब कोइ । निमनै मरणा बईठा होइ ।।४५३१॥ एं तह वनने जीवत फिरी । मैसे बन दिल्या नहीं धरी ।। ज मै याही भेजी बुलाइ । याक चित्त अमर खन पाइ ॥४८६२।। उठी दौडि उन ही के संग । परजा में होने मान मंग ।। गीता मों वोल रामचन्द्र । जे हम करी रावण सो दुद ॥४८६ ।। तेरे कारण किया संग्राम । रावण ने पहुंचाया जम घाम ।। जै मैं जाणता प्रेमी वात । प्रजा दोष कहै उह भांति ।।४६६४।। तो क्यों करता पाप की छाए । इतना दोष लिया मैं आप ।। रण में मारे इतने लोग । घर घर च्याप्या सोग विजोग ||४८६५11 जितनं दोहु घा अश्या जीव । अंसा दोष लीया में ग्रीव ।। असा दुख सों प्राणी सिया जाइ । जग में यह चरचा चली इंह भाइ
।।४८६६॥