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पद्मपुरा
कृतांत
ए या पाई । सिंहनाद वन हेरया जाई ।। पर्वत गुफा जोई सब ठाम | तिहां न कोई मामुष्य नाम ॥१४७५० ॥
नारद मुनिका भागमन
नारद मुनि मामा पुंडरीक । सह जगत में हैं पूजिनीक 11
जंघ लवनाकुर तिहृा । नारद मुनि बैठा था जिहो ।।४७५१ ।। देखा मुनि उठि ठाका भए । नमस्कार करि आवर बहु दिये ॥ पट बैठाये नारद मुनि सीलवंत नारद प्रति गुनी ||४७५२ ॥
श्रागम करि कुवारथ किये। कवण कवण तोरथ में गए ।। नारद मुनि कही सहु बात । जिह जिह कीनी तीरथ जात ||४७५३ ॥
रम सुखाया पढ़ा श्लोक । वर्णं समझाए तीन लोक ॥। बागी सुसिन करें उडोत | आसीरवाद मुनि कहे बहोड ||४७५४)
रामचंद्र लक्षमण वा तेज । सदा बिराज सुख की सेज ॥ दिन दिन कला तुम्हारी जोर। तो सम बली न दूजा और || ४७५५ ।।
लत्रनांकुस बोलीया कुमार । अंसे हैं कुरण बली अपार ॥ इस विष हमने असीस तुम दई । करण बंस उत्पन्न ते भई ।।४७५६ ।। बिसु समझाच मोहि । हम यह बातें पूछ तोहि ॥ सुमेर प्रंत पहुंचे कि भांति ॥ ४७५७ ॥
नारद कहे सुरउ बिरतात रसना सहस्र होई इकबार | जैसे सायर अगम अथाह । बालक कर पसारं वाह || ४७५८ ।।
राम लखमरण गुण लहुं न पार ॥
वह समुद्र स को पेर । रामचंद्र गुण अँसे फेर ॥
तीन लोक के वह जगदीस सुर नर सकल नवाबें सीस ।।४७५६ ।।
राम नाम तें तु पाप । रोग विजोग मिटे संताप ||
इक बंस कुल उत्तम आदि। धरम क्रिया सब ही में बाधि || ४७६०
दसरथ नृप प्रतापी खरा । क्यार पुत्र गुण लक्ष्यण भरा || रामचन्द्र प्रथम भी और उनसों सकल विराजे ठौर ||४७६१ ।।
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लखम सेती हैं बहु प्रीत भरध सत्रुधन हैं महा पुनीत ।। क्या कुंवर दसरथ दीया प्रयोध्या नाथ भरभ कु कीया ||४७६२।० सूरजहास लखमरण तिहां पाई। खरदूषण सुन मारा ति ठाय ।। अन चीते सु कीनी चोट । संबुक हृण्यां विवेकी बोट ||४७६३ ||