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________________ ४१६ पद्मपुरा कृतांत ए या पाई । सिंहनाद वन हेरया जाई ।। पर्वत गुफा जोई सब ठाम | तिहां न कोई मामुष्य नाम ॥१४७५० ॥ नारद मुनिका भागमन नारद मुनि मामा पुंडरीक । सह जगत में हैं पूजिनीक 11 जंघ लवनाकुर तिहृा । नारद मुनि बैठा था जिहो ।।४७५१ ।। देखा मुनि उठि ठाका भए । नमस्कार करि आवर बहु दिये ॥ पट बैठाये नारद मुनि सीलवंत नारद प्रति गुनी ||४७५२ ॥ श्रागम करि कुवारथ किये। कवण कवण तोरथ में गए ।। नारद मुनि कही सहु बात । जिह जिह कीनी तीरथ जात ||४७५३ ॥ रम सुखाया पढ़ा श्लोक । वर्णं समझाए तीन लोक ॥। बागी सुसिन करें उडोत | आसीरवाद मुनि कहे बहोड ||४७५४) रामचंद्र लक्षमण वा तेज । सदा बिराज सुख की सेज ॥ दिन दिन कला तुम्हारी जोर। तो सम बली न दूजा और || ४७५५ ।। लत्रनांकुस बोलीया कुमार । अंसे हैं कुरण बली अपार ॥ इस विष हमने असीस तुम दई । करण बंस उत्पन्न ते भई ।।४७५६ ।। बिसु समझाच मोहि । हम यह बातें पूछ तोहि ॥ सुमेर प्रंत पहुंचे कि भांति ॥ ४७५७ ॥ नारद कहे सुरउ बिरतात रसना सहस्र होई इकबार | जैसे सायर अगम अथाह । बालक कर पसारं वाह || ४७५८ ।। राम लखमरण गुण लहुं न पार ॥ वह समुद्र स को पेर । रामचंद्र गुण अँसे फेर ॥ तीन लोक के वह जगदीस सुर नर सकल नवाबें सीस ।।४७५६ ।। राम नाम तें तु पाप । रोग विजोग मिटे संताप || इक बंस कुल उत्तम आदि। धरम क्रिया सब ही में बाधि || ४७६० दसरथ नृप प्रतापी खरा । क्यार पुत्र गुण लक्ष्यण भरा || रामचन्द्र प्रथम भी और उनसों सकल विराजे ठौर ||४७६१ ।। I लखम सेती हैं बहु प्रीत भरध सत्रुधन हैं महा पुनीत ।। क्या कुंवर दसरथ दीया प्रयोध्या नाथ भरभ कु कीया ||४७६२।० सूरजहास लखमरण तिहां पाई। खरदूषण सुन मारा ति ठाय ।। अन चीते सु कीनी चोट । संबुक हृण्यां विवेकी बोट ||४७६३ ||
SR No.090290
Book TitleMuni Sabhachand Evam Unka Padmapuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Mythology
File Size9 MB
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