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पपुराण
एक दिवस है मरस्य निदान । ताथै बुधि करीजे जान ।। उन सम दूजा नहीं है और । रामचन्द्र लखमण की जोर ॥४७२७॥ . चक्र सुदर्शन उन के साथ । तीन लोक में इहै नरनाथ ।। उहां त उठि सीता के ग्रेह । नारद मुनी दिगम्बर देह ।।४७७८|| दरसन देख कियो नमस्कार । सिधार्थ बैठा तिह बार ॥ पूछी सीता नारद सू बात । किरण किरण तीरथ कीनी जात ॥४७७६11 नारद बोले तीरथ कथा । सब फिर बोले सिघारथा ।। परे नारद तु काहि है मूनी । कलह करम करता फिर घणि ॥४७८०।। प्रापस में भिडावं जाइ । तो कू बहुत कलह सुहाइ ।। नारद कहै हम क्या किया । सहज मुभाव उपद्रव किया ।।४५८१।। मो दुखरण लाग कहां । सीता रोवै नयन जल दुहा ।। लवनांकुम पीना गये । देगा या लोन में “ए !!..।। माता कहो तुम सांचे व्यन । कारमा कवन भरे तुम नयन' ।। जो कोई तुमसे बोस धुरे । ताकु हाथ लगाउं खरे ।।४७८३ । जीभ निकासू हतों पराग । जे कोई कह कुवचन प्रान ।। सीता कहै पुष तुम सुणों । कंत विजोग दु:ख उपज्यो घणों ।। ४७८४।। पूछ फुपर कहो तुम मात । हमारा कहाँ बस है तात ।। विवरा सबाल ऋहो समझाय । तो हमारा विकलप मिट आय ॥ ४७८५।। पिछली कथा कही तब सिया । बहोत भांति उडै है हीया ।।
जैसी कथा नारद पं सुनी । तैसी बात सीता सब भणी ।।४७८६।। लबकुश द्वारा प्रयोध्या पर प्राक्रमण करने के लिये प्रस्थान
सर्व उठ्या कवर रिस खाय । रामचंद्र चित दया न प्राय ।। गर्मवती कूदई निकाल । प्रब बैर लेहुं पिता 4 जाइ ॥४७५७।। घेर अजोध्या मांडू जूध । अब उनकी खोउं सब सुध ।। सेन्या जोहि प्रजोध्या चले । सूर सुभट संग लीने भले ।।४७८८।। एक सो स्याठ जोजन का अंत | भले भले निकसे सावंत ।। अयोध्या सीम पहुँते प्रांन । लूटे नगर बहुतेरा थान ॥४७८६।। डेरा दीया नदी के पार । रघुपति ने पहुंचाई सार ।। कोई आया बली नरेस । लूट पास पास के देस ||४७६०।।