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पत्रपुराण
सीता देखि कर मन भाएंद । जाणे दोक सूरम चंद ।। पुण्यवंत ए दोऊ वीर । कंचन बरण सब पणे सरीर ।।४६९७11 बध मन भया हुलास । मनोवांछित मन पुगी पास ॥ सब भूपति में कीरति बढी । दिन दिन कला प्रति ही पड़ी ॥४६६८। निरभय राज कर प्रांपला । पूजा वान मन लाया घणा ॥ दया अंग विधि पाने भली । कर राज मन में प्रति रली ।।४६९९
अखिल पुग्यवंत जित जांइ तिहां रिध " धनी सुख संपति अधिकार जीत पावे अशी ।। रहै घरम सु प्रीत कला दिन दिन बधे । लयनांकुरा सुपुनीत क्रांति पल पल चढे ।।४७००।। इति श्री पद्मपुरारपे लबनाकुस उषय भव विधानकं
६३ वां विधानक
चौपई खवनांकस भए जोवन भेम | वनजंघ चितवं नरेस ।। लक्ष्मीदई राणी सुर ग्यान । ससौ पला पुत्री गुणखान ।।४७०१॥ कन्या बत्तीस उनू की साथ । लम कू विवाह दर्दा नरनाथ ।। रहस रली सुबीते घोस । कुस' कारण विचार प्रब होम ॥४७०२।। किस राजा मैं भेजा दूत । ताक पुत्री रूप संजूक्त ।
माने वचन ढील न करई । मेरा कझा वेग सिर ढरई॥४७०३।। कूस के लिये पृथ्वीवर के पास दूत भेजना
पृथ्वीवती नगरी का नाम । पृथ्वीधर है जिरा ठां राव ।। अमृतवती राणी सुन्दरी । कनकमासा बाकं पुत्तरी ।।४७०४॥ अंसी कन्या किसको बरं । भेजो दूत कारण इह सरै ।। पठए दूत प्रथषीधर पास । गए बसीठ कन्या की प्रास ॥४७०५॥ नमस्कार सभा पइठ । निरम वाक कहै अति दीठ ।। बअजंत्र घर भाणज दोड । रघुवंसी जारगें सब कोइ ।।४७०६॥ लन को पुत्री दई अापणी । वत्तीस प्रवर राजा की धरणी ।। कनकमाला तुम कुस तू देह । मेरा वाकि हिंए धरि लेहि ॥४७०७॥ भूपति सुणि कोपे तिर बार । अरे मूढ कहो बात संभारि ।। दन वन फिरती आणी बहन । प्रवर वा कुंथार्ग के चिहन ।।४७०८।।