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पपपुराण
मैं जाणु' सीता ने मुई । करो पु नि चिता कछु नहीं ॥ भद्रकलस तब लिया बुलाह । देह दान सब को मन भाइ ॥४६६६11 रामचंद्र राजसभा संभालि । मन त टर न सीता सालि ॥ बहुत दिवस में मूले दुःख । राज भोग में मान सुख ।।४६७०।।
प्रीतम बिछुड दुख घणां, भूल नहीं दिन रयन ।। सीता ने वनवास दे, कैसे मान चंन ।।४६७१।। हलि थी पपपुराणे राम विलाप विषानकं ।
६२ षां विधानक पोता के पुत्र अन्म
चौपई पूरण गर्भ भया नव मास । श्रावण सुदि पून्यू परगास । श्रवण नक्षत्र उत्तम शुभवार । जुगल पुत्र जन्म्या तिह बार ।।४६७२।। लवनांकुस मदन कुस और । तात अधिक दिराज ठौर ।। जोतिगी पंडित जोतिग साध । भले मुहूर्त गुनां प्रगाघ ।।४६७३।। इन सम बली न होह है मान । महापुनीत धरम की खांन ।। बाघ ग्रह सम रणवास । सकल लोक अति करें हुलास ।।४६७४।। दांन मान सम ही कू दिया। घर घर रली बघावा किया ।। परियण की पाई सक नारि । सब मिल गायें मंगलाचार ॥४६७५।। कर नृत्य गुनीजन सब प्राइ। गावं ताल मृदंग बजाइ ।। ढोल दमामा करना । वीण बांसुरी अन सहनाइ ।।४६७६।। भांति भांति के बाजा बजै । सुनत सबद मन सुख ऊपज ।।
बहुत नारि सीता के संगि । करें सेव सुख पावं अंग ।।४६७७।। बालक्रीडा
निस बासर ग्राग्या में चलें । दोनु बालक शसी में पल ।। तेल सबटनों पर भसमान । सोम दोन्यू चंद्र अरु भनि ।। ४६७८।। पल पल घटियां बर्थ कुमार । बदन जोति शशि की उणहार ।। निकस्या दंत तारां की ज्योति । नख करांत की सोभा होत ।।३६७६ ।। बालक लीला सीता देखि । मुल्यो सोग इनांन प्रेषि । कबई हंस कबहुं करें रोज । चल गुडलियो उपजे चोज ।।४६८०।। उ7 लागि अंगुली गहि चलें । गिरं भूमि ते सोमैं भलं ।। कबहूं जननी गोदी लिये । लपटें कंठ महा सुख दिये ।।४६८१।।