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मुनि सभा एवं जनका पद्मपुराण
अध्ययन
पाले पोसे हुए सचेत । सब मिलि करें उनों सों हेत ॥ सिद्धारथ मुनि प्रागम हुआ । राजद्वार प्रबेस जदि हुवा ||४६८२ ॥ स्टारविख ॥ पट बैठा तिहां रत्न प्रमोल ||४६८३ || प्रखान बोले ग्रासीस ||
सीता माता करघा धरम वृद्धि मुनि बोले बोल ।
लेई प्रहार या मुनि ईस । सीता सु पुछा विरतांत । सुष्या भेद कांपे सब मात ॥ ४६८४ ।।
बे दुख सुरिश उपजी मत दश । धरम उपदेस सीता कू दिया ।
दो पुत्र प्राये सिंह बार | दरसन पाय कियो नमस्कार ।१४६८५।।
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दो रूपवंत गुणवंत सुंदर देह महा बलवंत ॥ कोमल चर नख जोति सपार । खंड पयोधर सीलं इकसार ||४६८६ ।। कटि हरि हिरा दिसतार भुजा अनोपस जोति पार || कर कोमल नख असेत । कंब ग्रीवा बच सहेत ||४६८७ ।। उष्ट कपोलों हीरा से दंत | मुंह कवांग दे सोभावंत ||
बदन जोति सोमं सिर केस | स्याम वर्ण सु विराजं भेस ॥४६॥
महा अटल सुदर्शन मेर। गुणगंभीर सागर के फेर ॥
इनके गुरु इनही ते धरणें । तो मुख गोचर जाहि न गिरणे ।। ४६८६ ।।
ई सरस्वती आपण मुख कहे । सीता सुत गुण पार न लहैं ॥ मैंसे चालक देखे उन मुनी । विद्या पढाइ किये बहु गुरणी ||४६९० ॥
एक बार गुरु देहि बताई । वे फिरि पढि सुगावें समझाइ ॥
विद्या पछि पारंगति भए । रवि सा तेज ससी किया सम थए ।।४६६१ ।।
जिहां लौं थे राजा मरु' रंक | इनछ सुरिए मान सब संक ।। बज्रबंध कु मिले सब आई | करें सेव सब मस्तक नाइ ॥ १४६६२ ॥ जिहां विकले दोऊ कुमार | देख रूप मोहैं सब नारि ॥
उनके वित्त धर्म का ध्यान | पापन गर्दै मन अपने जान ।।४६१३।।
बेद पुराण सुन मन लाइ । मिथ्या मारग चित न सुहाई ।। सम्यक दर्शन सम्यक ग्यांत । चारित्र भेद के करें बखान ॥४६६४
सब पर छह धरम की करें। राजनीति विघ समझें खरें ।
सस्त्र विद्या धनुष टंकार । वांण विद्या सीखे वह सार ||४६६५ ।। दोन वीर सब गुण संयुक्त 1 महासती सीर्वा के पुत्र 11 सोहई मुकट वस्त्र बर मंग बहुत कुमर करें सेवा संग ।।४६६६ ॥