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मुनि सभापंच एवं उनका पपपुराण
कोई न हमारे पापो हुघा ए दूषण अब लाग्मा नवा ।। जे रावण ने सीता के हरों । तो इह विपत्ति हमको पड़ी ।। ४५४७।
सीता मत राठ्या प्रापणां । परजा दोष लगावं घरगा ।। लक्ष्मण का कोष
इतना लखमण मुगिया बन | चढ़या क्रोध राते करि नयन ।। ८५८८ ।। कैसी परजा कहा बरांक । वे तुमसे बोलें इह वाक ।। सब कूमारि मैं परलय करू। जीभ कादि खाल भस भरू ॥४५४६।। सीता सती कृइस विष कहैं । उनके मन संका नहीं रहे ।। नप की चरचा परजा करें । ताक हाथ लगाउं खरै ।।४५५०।। अपना विस समझे नहीं प्राप । राज कथा को बोलें पाप ।। सबकू' घेरि निकटं दहै । फैर न जैसी मुख नै कहैं ।।४५५१।। रामचन्द्र नब कहैं ममझाइ । परजा सख जातिग गए । परजा तें राजा सोमंत । रावण परजा कुरण राय कहत ।।४५५२।। जिह विध दुख परजा का जाय । तसा करिए भरत उपाइ ।। बोले लक्षमण सुंण हो भ्रात । महासती है सीता मात ॥४५५३।।
वे हैं दुःख देण्या हम संग । सुख की बेर करो ग्रह मंग ।। परिजा है कूरडो समांन । हस्ती नै जू भोंके स्थान ।।४५५४।। हस्ती मन न पाणं ताहि । उनका कह्मा नसा नर नाह ।। ज कोइ शशि पर नाखं घुल । वाही के सिर पड अमूल ।। ४५५५।। प्रग्यांनी बोलें मग्यांन । उनका वचन कहा परमांन ।। सीता दयावंत बहूत । कोमल देह रूप संजुत्त ।।४५५६।। गर्भवती किम बीजे काढि । दोई जीब सौ पाय दुख वाहि ।। रामचन्द्र बोल जगदीस । या कों ले गया था दस सीस ।।४५५७।।
राम का निर्णय
ता कारन मेसी कहै न लोग । थिर नहीं इह संसारी भोग ।। नपणी कीत्तं को यह संसार । जे अपकीत्ति हुई अपार ||४५५८।। हम सुम सा अपकीरत करै । प्रध्वी पर अस को फिर धरै । जैसी परजा तसा राजा जिसी । जुग जुग चले हमारी हंसी ॥४५५६।। घरमनीत करूं हूं सही । मेरै बात मुह देखी नहीं ।। मृतांसबक लब लिये हंकार । रषि परि चढि दौंडे असवार ।।४५६०॥