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पापुराण
सीता द्वारा अपना परिचय देना
भावमंडल है मेरा भात । विदेहा राणी है मुझ दात ॥ दसरथ है अजोध्या का राछ । च्यार पुत्र ताफे अधिकार ||४६१।। रामचन्द्र की मैं पटधनी । सुखपाई प्रसी गति बणी ॥ केइकेइ कुवर दशरथ दिया । राम लखन घासा लिया ।।४६१५।। भरथ सत्रुधन पाया राज । बहु विध प्रजा का सारे काज || हूं भी फिरी राम के साय । दंछक वन में श्री रघुनाथ ।।४६१६।। तिहां मारथा संजुक कुमार । खरदूषण लडिया तिण बार ।। रावण ने तिहा मोकू हरी । वाक सील की थी प्रांखडी ।।४६१७॥ अनंतवीरज पास लिया सील । गया लेक लागी नहीं ढील ।। बिराधित सुग्रीव हनूमान । वानर बंसी अति बलवान ।।४६१८।। राम लक्षमण है बिमान बैठाद । लंका में पहुंचे सब आइ 11 रावण मारे लंका तोडि । तब मिलीया रघुनाथ बहोरि ।।४६१६।। उहां ते पाया अयोध्यापुरी । परजा ने 'घरचा इह करी ।। रामचन्द्र ने इह चतुराई करी । फेरपट दिया सीता प्रसती ४६२०।। सीता रावण ले गया । ईनां फेर घर बासा कीया ।। उहां अंसी घरचा मांहि । भनथ बैराग भयो मनमाहि ॥४६२१।। विक्ष्या ले पाया निरवारण । बीते मोह दिन गर्भ का जान ।। भए दोहला इछा यही । तीथं पंचकल्याणक सही ।।४६२२।। करू जात्रा पूजा घणी । सब मामग्री उत्तम बशी ।। महेन्द्रवन पूज्या भगवंत । मुनिसोक्त स्वामी अरिहन्त ।।४६२३।। कलास जात्रा पूजर जोग | पंचमेरु बंदना निवोग ।। पुहपक विमाण क्रीया संजुस । परजा निगा वा आय पहूंत ||४६२४।। करी पुकार राम पं जाय । नारद बिगड़े हैं सब ठाइ ।। सब प्रताप सीता का कहै । कैसे हम नगरी में रहैं ।।४६२५।। बचघ समझा ग्यांन । तुम समझो हो वेद पुराण ।। मारत ध्यान तुम करो दुर । बारह अनुप्रेक्षा समझो मूर ।।४६२६।। च्या गति माहि लोल्या हंस । कहीं नीच कहीं उत्तम बंम ।। रोग सोग प्रारत मै रह्या । भ्रमत भ्रमत बिसराम न गहा ॥४६२७।।