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मुनि सभापंर एवं उनका पापुराण
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के इंद्राणी के पदमावती । के किनर के विद्यावतती । सब सेन्या कर महै हथियार । तिहां नांगी चिमके तरवार ॥४६०३॥ ह्य गय रथ किंकर ता संग । महाबली राजा बनजंघ ॥ अंसा बन भयानक अप्ति घोर । मानुष्य नै माइ सके कोई और।।४६०४॥
वहा सूम असुभ दोऊ करम, भपणी चाली तिहा चाल ।।
भूपति ने भिक्षु कर, रंक न करें निहाल ।।४६०५।। इति श्री पद्मपुराणे सीता वनवास विलाप वनसंघ समागम विधान
६. वां विधानक
बोपई सेना थकित रही वा ठाव । प्रागै कोई धरै न पवि ।। सूर सुभट प्रने होइ चलै । धर्म कर्म समकित्ती भलै ॥४६०६।। उत्तरे भूमि सीता कू देख । माता कहो तुम अपना भेष ।। तुम हो कवरण मैसे वन मांहि । ऐसा दुःख करो तूम कांहि ।।४६०७।। सस्त्र देखि सीता मय कर । भीड देखि मन में प्रति उरं ॥ परे वीर मब देहु हारि । प्राभूषण एही तू उतारी ।४६०८।। मेरे नाम राम की पास । लेहु सकल छोडो मो पास ॥ कोले सुभट तुम मति करी । बचघ इहां नरपति खरो ।।४६०६।। हाथी पकड़न पाया भूप । सम्यकदृष्टी दया स्वरूप ।। तीन ग्तन हैं वाफे चित्त । जती भाव राख है नित्त ।।४६१०।। युही पाया बचघ भपसी । बहुत लोग राजा के संगती ।। सीता नै पूछियो नरेस । माता कहो प्रापना भेस ॥४६११।। महागंगा तिहां बहै अपार । ताहि उत्तर कसे भए पार ।। ए धन महा भयानका बुरा । कारज कवरण पयाणां करा ।।४६१२।। प्रपणा कहो सकल बिरतांत । सांची बात सुणावो मात ।। पिछली बात कहो समझाइ । जनक सुता हूँ मैं इस टोय ॥४६१३।।