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पपपुराण
सर पडस्या मरै एक बार । नारी विस मरे बारंबार || जले नीकलिया त्रिय संग । तो अब भया मान का मंग ।।४५३५॥ विभचारिणी कर कुकर्म । कुल की लाजइए कुण धर्म ।। सीता कू ले माया ग्रहै । नि) का कोना सु कहैं ।।४५३६५ किस किस के मै मद मुख । मोकू प्राइ वण्या है दुःख ।। मेरे राज प्रणा सुख भरो । सीता रास्या अपजस घरो ।।४५३७।। मैं जाणं है सीता सती । इस दोष न लाग रती ।। राख्या चाहैं लोकाचार 1 दोई विथ है निश्च व्योहार ॥४५३०।। राजा छोडे धरम की रीख । घटै मरजाद वध विपरीत ।। राजा मुह देखी प्रजा कर । सब का पाप अपने सिर धरं ।।४५३६।। परम विचार कीजिये न्याव । अपरगां परस्या जाण समभाव ।। बहु विष सोच करें रामचंद्र । कहा विचार कौनिये दुद ।।४५४०॥
राजनीति रघुपति करी, कंझुधन प्राण्या मोह ॥ प्रजाने उन कारणई, नियास्यु किया विछोह ।।४५४१॥ इति श्री पपपुराणे रामचन्द्र प्रजारिष्या विधान
हवां विधानक
चौपई शम कामय
रामचन्द्र वठा पट प्राइ । निसंकत सों कह्या बुलाइ ।। बेग जाइ लखमण कुलाव 1 गया दूत नारायण ठोय ।।४५४२।। नमस्कार करि ठाता भया । राम वचन हरि सों भाषिया ।। लखमण उठि माया तिरण साथ । ठा निकट तिहाँ रघुनाथ I४५४६।। रामचन्द्र भाष्यो विरतात । प्रजाने सकल भाष्यो बिरतांत ।। धरि परि नारि कुमारग गहा। मनमें कुछ संका नवि रमा ।।४५४४।। सासु सुसरा कंत की जाण । कबहू न मानें उनू' की प्राण ।" बे पोछा सीतां का लेह । बिन सवारथ कलंक में देह 11४५४५॥ जिसमें कुल को लाग लाज । तिसक राख्या बण न काज ।। प्रब लो कुल को लग्या न दोष । पुरुषारण करि पहुंचे मोप्य ।।४५४६।।