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पद्मपुराण
पनमन देखी कहे वीचार । असुभ करम को सके न टार ॥ सुभ असुभ संगि लाया कम । प्रादि प्रनादि जीव के भर्म ॥४५.०७।। जइस ससी का बधै प्रताप । पूनम ताई पूरण प्राग ।। माइस करमन का उहै हुवे । जस ग्रहन ग्रहै फुर्व ॥४५७८।। पडिवा सेतो कला हुवै हौण । असुभ कर्म कर भाषीन 11 दुख सुख लग्या जीव के संग । तुम मनि करो अपना मन भंग ||४५०६ ।। गुणमाला वोली गुणवंत । वेद पुराण सुरणो मन मंत ॥ सीता मन चिता मा करो। एता सोच कहा चित घरो ॥४५१०॥ तुम सबसे पटराणी बडी । राम तुमने छडि नहीं घनी ।। रामचन्द्र जीवो चिरकाल । तुमकों भय है किसका हाल 11४१११ करो पूजा पुनि सांतिक । पाप करम की मेटो लीक ।। चुनि दोन तप काट व्याध । वयावृत्त कीजिये साघ ।।४५१२।1 दुख कलेम सब जाई विलाइ । हील न कीजे देह मंगाद ।।। भद्कलस सीता प्रधान । सम विष जाणें पुआ दान ।।४५१३।। तहि बुलाइ प्राशा इह दई । उत्तम वसत मंगानो पई ।। जो मन इच्छ ताकू देइ । पूजा प्रतिष्ठा बहत करेइ ।।४५१४।। रोग कल्पना हो गई दूर 1 चढे पनि रिध भार पूर ॥ सुम्नी बान मन हुवा हुलास । प्रानि सोज राखी सन पाम ।।४५१५।। जैसा कोई चाहे त्याग । तहसा दे जइसा को मांग ।। सांतिक प्रतिष्ठा होइ दिन रयरण । पंडित पर्दै सुहावने बैन ।।४५१६।। वेद पुराग सब ही ठो होइ । बहोत पनि खाट सब कोद ।। राम लक्षमण वैठा पट प्राइ । बहोत लोग मिले तह शाइ ॥४५१५।। सोलह सहस मुकद बघ राइ । नमस्कार करि लाग्या पाइ ।। पोंग छत्तीस ठाही भई । ते सब नृप द्वार प्रयषडी ।।४५१८।। रघुपति चितवं प्रजा दसी । नींच लोग मिल मिल कर हमी ॥ रामचन्द्र ने लिया बुलाइ । अपने अपने दुख कहो समझाइ ।।४५१६।। विजय सुरज मध्य परवीन । वसकासव पींगल तीन ।।
राज सभा में ठाः प्राह । करि डंडोत नवण करि भाइ ॥४५२०।। रातारा प्रश्न पूछना
पूछ राम कहो तुम सांच । किह कारण भाये सब पंच ।। सब मिल थकित रहे तिहां लोग । जिन पाषाण ध्यान धरि जोग ।।४५२१||