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पपुराण
सोता द्वारा स्वप्न दर्शन
कंचन पलंग पाट मुबण्यां । रतन जोति सू सोभै घणा ।। पुहप बिछाया पटंबर तल । केसर भर या नींदवा भलै ॥४४८१।। स्वेत बिसन तिस पर विछाइ । महा सुगंध भ्रमर लोभाइ ।। डिके कुमकुम मा संमारी होर । चंदन किया लग्या ता पोस ।। ४४६२।। तणे चंद्रपा मोती झालरी । अनेक प्रकार तिहा सोम खरी ।। तिण वस्त्रां की जीति अपार । सीता करं सोलह सिंगार ४४८३॥ आभरण वीर मोती मा हार । संग सहेली रुण झणकार । पान फूल का डबा भरि घरै । सीता सुपना देख स्वरे ॥४८८४ । रात पायली घटिका च्यार । मूपिना निध पाई तिहबार ।। दोई केहरि गर्जत देखे । सायर निर्मल प्रेषे ।।४४८५।। देव विमाण पावता जाणि । जाणूसुख मैं घसै प्राण ॥ भए प्रात जागरण की घेर । गा गुणीजन मधुरी टेर 1।०४।६।। पंच सबद नाज तिह घडी । सीता जागी कर मनरली ।। करि सनान सुमिरै जिमनाथ । बहुत सखी उन लीनी साथ ॥४४८७।। पति सौं जाइ वीनती करी । सुपनां फल भाखो मन भी ।। सुरिंण रधुपति समझाथै बास । पुत्र दोइ होसी ससिंक्रांत ।।४४८८।। देव दोई तेरे गर्भ चए । निसचे समझि पापणे हिये ।। सीता के मन भए पानंद । पंचनाम सुमरचा जिव ।।४४६।। रित बसंत' दंपति सो प्रीत । घर घर गुरणीयण गाव गीत ।। मंजरि अब सफल बनराश । कोकिल वचन अति चित्त सहाह ।।४४६०।। पंछी सबद सुहावन वोन । कामी तिहां प्रति करें किलोल ।। दिन दिन बाबै धरम पुनीत । उत्तम वसन परि डाले चित्त ||४|| पुन्य पाप का इन विचार । पापी दलिद्री का इह विकार ।। गर्भ विष लष्यण को चिह्म । जाणों ते पंडित परवीन ।।४४६२॥ पापी जीव गर्भ में पड़े । क्रोष प्रमाद देह दुख भरै ।।
खाबै ठीकरी मादी मांस । पुण्य होण का इह प्रकास ॥४४६३|| सीता का दोहिला
पुन्यवंत के लष्यण जाण । उत्तम बस्त बाय नित पाण ।। सब सो राखे अधिक सनेह । दिन दिन जोति दिप अति देह ।।४४६४॥