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रायपुर
४८ वा विधानक
चौपई हनुमान का एन: राम के पास प्राकर पूरा वृतान्त कहना
हणुमान सेन्या में मिल्या । फिरे छत्र ता ऊपर भला ।। किषधपुरी में पहुंच्या जाइ । प्रपणे मंदिर बैठा प्राइ ।।३१५२।। सुग्रीव आदि भूपति सब चले । हनूमान सेती सहु मिले ।। संका तणु सुम्युविरतात । सुग्रीव कह रघुपति सी बात ॥३१५३।। बीती रयण उगोयो भौण । राम पास पहुंचे हनुमान ।। नमस्कार करि करी रंडोत । तिहां भूपति खडा बहूत ।।३१५४।। पूछे राम सीता कुसलात । हनूमान कहैं सब बात ।। प्रमदा वन में सीता रहै । दूती वस वचन तिहां कहै ।।३१५५॥ सीता प्रनपाणी नहीं रोच । नाडि निवास कर बहु सोच ॥ उसकै सदा रहे तुम घ्यांन । मनमें कवन प्राय प्रान ॥३१५६।। मैं उनक खपाई रसोई । राति दिवस बीत हग रोइ ।। सब दूती मैं दई बिडारि । राबणा प्रागं करी पुकार ||३१५७।। रावण तो भेजी निस सैन । मैं लंका में कियो कुचन ।। तोडि बाग फोड्या सब गेह । लंका जाल करी सर खेह ।।३१५८।।
तुम सू प्राइ कहा संवेस । मन प्रार्य सो करो नरेस ॥ राम की चिन्ता
राम नयन सेती बहै नीर । आ हिरदं सीता की पीर ॥३१५६॥ धिम विग भाई असा जीवरण हम जीत्रत सीता दुःख घणा ॥ जे सीता का दुख करें दूर । तो हम बली कहावै सूर ॥३१६०।। जिम केहरि दावानस मांहि । ताका बल चाल कटु नाहि । असी कठिन बरणी प्रब आम । इण विध सोच फर रघुराय ।।३१६१।। लक्षमण कहे तो पहुंचो लक । तो मन की पोषं सक संक ।। धन्य सुग्रीव धन्य हनुमान । इनुदई सीता सुषि प्रानि ।।३१६२।। अब जो भावमंडल व संग । रावण तणो करें मान मंग ।। सुग्रीव सेती बोलें रघुनाथ । भामंडल प्राय हम साथ ॥३१६३॥ बाकू हम ढिग लेहु बुलाय । के हमने धो पंथ बताइ ।। सायर तिर हम लका आई । तुस इहो रही प्रपणी हाई ॥३१६४॥