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पद्मपुराग
मेघनाद और बंदमय । च्यारू' अटके मनिह भये ।। इनकम तुम छोडो जाइ । दरसन कर पिता का आइ ।३८२२।। छानर बंसी बोले तव राह । रावण ते वे बल अधिकाइ ।। जे वह लूट तो लें वर । राक्षस बंसी मिल उनसों फेर ।।३८२३।। अंसा बल हम पे है नहीं । अब मैं उनसु' जीत कहीं ।। उनकू मारि करो तुम ह । दूरजन सूअब कसा नेह ।। ३८२४।। मारि मारि करि लीजे जीव । अव ही उनकी काटो ग्रीव ।। समचंद्र चित करुण। माइ । उनका पिता जसं इस ठाव ॥३८२५।। अब नहीं दरसन पाय तात । बहुरि देखेंगे किह भांति ॥ फिर बोले सेना के लोग । अंसान' किम छोड़न जोग ।।३२६॥ भावमंडल कहै छोडो उननं । जे तुम भय राखो नहि मनमें ।। तुम मति कीज्यौं जनसों राडि । जब वे चतुर तो हम भी व्यार ॥३८२७ । जो वे फिर भी हमसौं लई। तो हम भरोसा नाहीं करें। भावमंडल अने हनुमान । सुग्रीव अंगद चले बलवान ॥३०२८।। बे न्यारू हैं बन के माझि । महादुखी है दिवस न सांझि ।।। लोह पिजरा चहुंघां मूल । ऊभा तिहा दुःख का मूल ।।३८२६।। हाथ हथकड़ी पवि साकुली । मन में तोष देह सब जली ।। मन का छोइया सब संदेह । राजभोग से तज दिया नेह 11३८३०।। प्रयक छूटै तो तप करें । फेर नही भवसागर पड़ें। अंसा ऊनो किया या ध्यान । भावमंडल तहां पहुंच्या श्रोन ॥३८३१।। के रावन झुझ्या संग्राम । तुमनं कोक लक्षमण राम ।। दरसन करो पिता का ग्राइ । खोलि पिजरा अपने संग ल्याइ ॥३८३२।।
नीची इस्टि गंवर की चाल । प्राचं ते ण्यार भूवाल ।। भकर्ण एवं अनमोत को छोडना
रामचंद्र प्रति मारणे सर्व । गलत भया जोत्रां का गवं ॥३८३३॥ कह राम तोक्दू छोटि । जो तुम बेर न करो यहोडि ।। बोले कूमवर्ण इन्द्रजीत । हमतरे छोड़ी संसारी रीत ॥३८३४।। जन छुटै तब दिध्या तेहि । राजभोग जल अंजलि देहि ।। बेडी काडि छोझ्यिा कुमार । रावण कोरिया करी संवार ॥३८३५।।