________________
३६२
पपपुराण
साधां का बरसन निमित्त । दीप पढाई मांहि ममंत ।। नृप पूछ नारद सू बात । तुम देस देखे भली भांति ।।४४३२।। राजकुमार कोई देख्यो पाप । सास कन्या देहुं मिटे संताग ।। मारद रिष बोले सिंह बार । नगर अजोध्या स्वर्ग उनहार ।।४४३२।। रामचंद्र का लक्षमण बीर | : कंचन शुगर :1 बल पौरिष चक्र उन पास ! तिहुं खंड का भोग विलास ।।४४३४।। भूखेघर सहु से ताहि । उन सम बली अपर कोई नाहि ।। सगाई करो लक्षमण सुराइ । उत्तम कुल रघुपति के भाई ।।४४३५३ । इतनी सुरिण कोपिया नरेन्द्र । हमारा मारथा है वन भाई बंध ॥ रावण उन मारया है ठौंर । लंकागढ़ वाह्या है तोडि 11४४३३।। उन कू मारां तय हम जाई । प्रपणा जनम तब जाला भाई ॥ वरी सु कैसा मनबंध | क्रोध चढे राजा मनि अंध ।। ४४२७।। धक्का दे नारद ने दिया कादि । मान भंग रिस चिंता बालि ।। लिखया लेख पट मनोरमा पेखि । दीये हाथ लक्षमण कूदेखि ।।४४३८॥ बेध रूप नारायण कहै । इहैं पट रूम मैदरूप कहाँ है ।। के किनर के खेचर सुता । देखत उपजै कान की लता ।।४४३६।। इंद्राणी के पदमावती । भोमि गउचरी नही इस भती ।। बोले मारिद गिर बंतासि । रत्नपुर नगर सबही से बालि ।।४८४०।। रतन असफंदन खेचर राय । हरिमन पुष कोच के भग्य ।। मनोरमा पुत्री है गुणवंत । वे नरेस चित्त बैर धरत ।।४४४१।। सीजे जुध' करण का साज । मारो दुर्जन ज्यों सीझ काज ।। विराषित कहें प्रभू तुम सुरणी । सेना जोडि दोऊ को हों ।।४४४२।। वे विद्याधर हँगे घणे । उनु से जुध अकेले न वणें ।। देश देश का तेडो नरेस । राम लछमन चले रत्नपुर देस ।। ४४४३|| घेरचा नग्र मुण्यो रत्नरथ । हरिमन पुत्र बली समरस्थ ।। जिहां लौं थे विद्याधर राव । एक भए महा क्रोध के भाव ।।४४४४।। हम धाया चाहे थे सही । मूभिगोचरी पाए पाप ही।। अब हम राखें अपनी टेक । करो जुष सेना होइ एक ।।४४४३।।