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पद्मपुराण
प्रतिसय की हीवंगी हाण । देव सहाइ होसी नहीं आग ।। उसम जन सेवई मिथ्यात । कुगुरु कुदेव की माने जात ।।४४०६।। उत्तम कुल न करेगा राज । नीच लोग मुगौंगे राज ।। जैन धर्म की होगी हारण । मन वध काय मुनै न बखरण ||४४०७।। माया धारी वगा जती । ते पावंगा खोटी मती ।। श्रावक होइगे निंदक धर्म । देव सास्थ गुरु लहे न मर्म ||४४०८|| खोटा मत पोखेंगे घणें । मिप्यावेव निसर्च सों सुण ।। पुत्र पिता में होइ विरोध । भाई भाई करि करेंगे क्रोध ।।४४०६।। एक भूखा एक मुगरौं सुख । कोई न पूछ दुखिया दुःख ।। जई भाई देइ उधार । दुरजन होइ लई तिन बार ॥ ४८१०॥ कोध कषायो होइ हैं मुनी । प्रायग सेवा न करि हैं धनी ।।
-पानी ही हिंध । मिष्मी भादक वि ।।४४११॥ कुगुरु कुदेव की महिमा होइ । खोटा वेद सुम्मे सब कोइ । बहोत लोग होइंगा दुखी । को को होइ है सुखी ।।४४१२।। सत्र घन बोटं सुणों मुनीन्द्र । तुम ऋपा रौं होई प्रानन्द ।।
तुम से साधक पाई मो गेह । करमा क्रितारण मिटं मंदेह ॥४४१३॥ मार्शीवार
सप्त मुनिस्वर वील बैन । मथुरा राज करो सुख चन ।। घर घर पूजो प्रतिमा भगवंत । चैत्यालय कीज्यो महुमंत ।।४४१४।। पूजा परिचा सूमन ल्याइ । दुस्ख संताप सब जाइ विलाय ।। मुनिवर गए अउर ही थान 1 नरपति पाए अपणों जान ।।४४१५।। रामचन्द्र की प्रागन्या पाइ। मथुरा चले सत्र धन राइ ।। मुनि थनिक वंदे मुनिराइ । रामचन्द्र के पहुंचे अनि ॥४४१६।। द्वारा पेषण कीए नरेस । चरणोदक लाए सुभ पेय ॥ विनयवंत होइ दीए दान । उत्तम भोजन करि सनमान ।।४४१४।। अक्षय दान मुनि बोले बोल । घरि घरि चरचे रतन प्रमोल ।। सघन मथुरा पहुंच्या बली । सकल प्रना प्रति मानी रलो ।।४४१८।। जिनवर मुवन किया उच्चत । पंडित सेव करें बहुमत ।। बेद सास्त्र होगे दिन राति । सुर्ण लोग सुख मांनै गास ॥४४१६॥