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सुमि सभाबंद एवं उनका पद्मपुराण
राखे पति पर्यंत की आज । उन जीरों लागं कुल लाज ||
दोघां सेना
सर
ज्यु गोलो गोला पर्ने हथनाल । सिला पड ज्यु पर काल || मारि मारि दोषी हो । किनर देव देख सब कोइ ||४४४७ ॥
हाथी घोडा पैदल लर्ड । बहुत लोग दोउंघी भिडें ॥ मारे गदा बज्र की घास । बरछी खडग प्राण से जांत ।। ४४४८
पडी लोय परवत सी जान । सोनत बहै नदी तिहां समन | पड़े लोथ गिरध उनाहैं खाइ । ऊपर चरणी पील मंडलाइ ||४४४६॥
दूहा
भई जीव लक्षमण तणी, हारे विद्याधर भूप ।
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नारद रहस्या वा समं देख जुष का रूप ||४४५० ।।
चौपई
विद्याधर भागे रण छोडि । वे भागें घं मारें दोडि || नारद हंसि हंसि ताली देहि । सब मिल नींची मूंड करे ||४४५.१ ।। भागण कू रही नही ठोडि । फेर संभाल करें ये झोडि ॥ ज्यों केहरि सारंग डरे । इम लक्षमण ते डर करि मरें |१४४५२ । । मनोरमां ति जुध कों देख । मनमें श्रारभो ग्यान विशेष ॥ मेरे कारण इतने भुए। पसचात्ताप मन मांही किये ।।४४५३ ।।
बैंठ विभाग लखमण हिंग आय। फूलमाल घाली गल जाइ । लखमरण हुआ संतोष मिटा जुध भया मन पोष ||४४५४ ||
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दंपति आई बनकी ठोर । सुणियो राय सुता का सोर 11
मनोरमा लखमण सु मिली। सब मिल कहि यह हूँ भली ।।४४५५ ।।
हम ढंढोला बहुला देस । लखमण महाबली भुवनेस || मन की इच्छा पूरण भई । सबही की चिता बुझ गई ।।४४५६ ।।
रत्नरथ नृप सही परिवार । लक्षमण पास भाए सिंह बार ॥ सही मिले भया सबंध टूटा असुभ करम का मंत्र ||४४५७ || रनर सेती नारद कहें तो मैं गुण पराकम ना रहे || तूं कहे था बचन प्रसार अब काहे तें मानी हार ||४४५८||