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मथुरा में सात मुनियों का भागमन
चौपई
पद्मपुराण
मथुरा आए मुनिवर सात । चारण मुनि ग्यानी विख्यात सुरमन श्रीमन श्रीनव जाण सर सुंदर जीवन ॥४३८१ ॥ विनयलाल अवर जयमित्र । अष्ट करम जीते उन सत्रु ॥ श्रीनंदा राणी सुंदरी । जार्क पुत्र भए सुभ घडी ।।४३८६२ ।।
प्रीत कर मुनि केवलज्ञान । जै जै करें देवता श्रान ॥ श्रीनंदराज घरम कु सुण्या । पुत्र सहित दिगम्बर बन्या ।।४३८३ ।।
रय देह पुत्र बालक मास एक । थाये राज काज को टेक ॥। श्री नंदमुनि केवली भया । बरम प्रकास मुकति को गया ।।४३८४ ।। पैसा तु तप करें बहुत । स परिस्या बहु रुत्त ।। इनकी उपजी चारण रिध । पोदनापुर गये नं सातु सिंध ४३८५ ।।
ह्वां ते प्राये अजोध्या देस । श्ररहृदत्त देवे मुनि भेख ॥ देखें सेठ मन कर विचार । रति चरमा किया बिहार ||४३८६ ॥
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एकाहे का है ए मुनी । चजमासा माँडे उलं दुनी ॥ वे मुनियोव्रत जिन भन | दरसन हेत किये थे गोन ॥४३८७ ||
पंडित नई देखे धारण जती । प्रादर भाव किये वह संती || अष्टांग मना सेठ मरहदत्त । सुपो मुनीसर चकत ॥ ४३८८।।
* साथ आए मो ह । मैं जनसों कीया न सनेह | अपणी निंदा बहुतै करी। मेरे मन भाई बुरी ॥४३८६॥ कठिन पाप थापक किया । गदगद बोलें उमड़े हिया ||
वे मुनिवर थे चारण जती । हिंसा करम न लागे रती ||४३६० ||
बरती हैं घर रहें चरण | दरसन कीया हूं दुख हरण || मैं साधां की निंदा करी । मोहि कुछ न भई सुष सिंह घडी ।।४३६१ ॥
परनिंदा है गाय का मूल । उपजी कुमति गई सुष भूल || अण जाण्यां नर करें जे पाप । मनकू रामभि करे पश्चाताप | १४३६२
पाप छोड करें उपवास तुटै पाप पुन्य की श्रास ||
जहाँ साध सोइ उत्तम ठाम उनकू देख घरे मन भांम ||४३६३।।