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मुनि समाचार एवं उनका पमपुराण
रामचन्द्र का छोटा वीर । याकों कोण सके करि वीर ।। जे सुख फेरि रामचना पढे । एक एक का मुरबह उडे ।।४२८८।। के ते लकारें अपने वार । जल नवका महा गुण सार ।। जीत सघन के हार । मंसी उ कहीं गवार ।।४२८६।। सत्रुधन मेजिया बसीठ । ठाम ठाम दोदिया पीठ ।। द्रुत गए वे नगर मझार । जिहां सहर मथुरा का दरबार ॥४२६०।। सत्र धन पं पाए दूत । पूर्छ नरपति भेद बहुत ।। कुबेरछंद वन पूरव और । मधु भूपति प्रब है वा ठौर ।३४२६१।। क्रीडा करत बीते दिन षष्ठ 1 वे मुख देखि मूले कष्ठ । मंसा में घेरा बा ठवि । अवसर चूका बणे न दाव ११४२६२।। सत्रुधन घाया तोटि किवाड । वन वेहा घेरचा सब बाट । तोडि मंध देडी दई स्वोलि । दे असीस बोले सह बोल ।।४२६३।। तेरी जीत कर जगदीस | सब मिल पाणि नमाचे सीस। अर्घ रात्र घेरया सहु देस । कोटि बाहि कीया परवेस ।।४२६४।। राजा मधु को भई संभार । बरछी रही गेहे मझार ॥ लो राजा मए प्रापनै । धीरज मी छोग्या नहीं वसा ।।४२६५।। सेना मधु सार्थ जब जुरी । दोउषां मार बाण की पड़ी। गोला गोली परवं ज्यु' मेह । चाय लगै सुभट की देह ।। ४२६६ ।।
वहा हाथी सूहाथी लरे, रथ घोडे पाहक्क ।। मुह फेरै नहीं सूरमा, पाछी हट नहीं मांग ।।४२६७।। पठी लोथ परवत जिसी, बाजे लाल सुरंग ।। बायर भाज देख रण, हीस खडे तुरंग ।।४२६८।। लोनारण मधू सुत बली, घस्या मृगराज समान ।। घनुष गह्या कर प्रापणं, सधन मारघा तान ।।४२६६।।
मल्लयुस
गिरया सत्रुधन रथ थकी, दूजा रथं संभार । मारी गदा कुमार के रथ टूटया तिण वार ।।४३००। फिर संभाल दोन्यू लडे, पैसे लई जु मल्ल || कोई हार न मानई, जोवन वंत घटल्ल ॥४३०१॥