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पपरापुरा
लौंना रण विद्या बान गहि, तोडे धुजा का देर । सधन वडय संभाल करि, लिए प्रॉन जब छंड ।।४३०२।।
चौपाई झुझा कुमार मघु सु'एर तणा । पुत्र मोह तब व्याप्या पण ।। चळे कोप सनमुख ए माई । सत्र धन बोलिया रिसाइ ।। ४३०३।। मधु राधा जो तेता नाम । करो वेग तुम सनमुख काम || तो मैं बल है तो तुप्राय | जममंदिर तोहि भेजों राव ।।४३०४।। दोनों दल में माची रार । कामर सवढे पडे पुकार ।। विद्यावान सु छाया भानु । प्र से जुध महा भयवान ।।४३०५।। महासुभट अझ पडि व्यार | कातर भाज गये तिणवार ।। मधु सूदन सोचे मन मांहि । सत छड्या पति रहनी नाहि ।।४३०६।। एक दिन मरणा सही निदांन । काल रहै नहीं किस ही सयांन ।। तात सनमुख झझां आई । कोप्या भूप सांभटी प्राई ।।४३०७||
गदा खरग करि गहे संभार | वान छुटै ज्यौं घनहर धार ।। मधु रामा द्वारा पुरा मूमि में पंराग्य
सत्र घन मारी तरवार । मधुराजा घुमैं तिह पार ।।४३०८।। मातमध्यान सु हिये विचार । भरमत फिरमा जीव संसार ।। समकित कबहि न पाया चित्स । मिथ्या मोह भ्रम्सा चहं गति ।।४३०६।। मनुष्य जनम धरि धर्म न किया । जनम' प्रकारय खोइ बार गया ।। पुत्र कलिन हय गय मंडार । इणमें यू ही राच्या निरधार ।। ४३१०।। अष्ट भदों में माता फिरथा । सात विसन सूपरत्रा करया ।। संजम व्रत सू करवा न नेह । विष पभिलाप सुपोषी देह ।। ४३११।। अचानक मरण भए है आज । अब कैसे होइ जी का काज ।।। पन्न पान तजि लियो संन्यास । राज भोग की छोडी प्राम ||४३१२।
प्रारत रौद्र राग अन द्वेष । धरम ध्यान मन में करि पेष ।। उत्तम छिमा दसों विध धर्म । दया भाव का जाण्यां मम ।।४३१३।। कायोत्सर्ग परषो न जोग । प्राभूषण पणे छोडे संजोग ।। सत्र धन मादि सकल भूपती । ऊभा देख्या मधुसूदन जती ।।४३१४।।