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पपराग
रावण तणी जमाई वली । बाप बग्छी कहिए भली ।। एक चउट सू हणे सहन । अनि भन्ने है बाप सस्त्र ।।४२७४॥ घरछी कर की कार में रहै । ऐसे गुण गरब तन गहै ।। तुम बासो मति माटो युद्ध । अव र रामको टुप गुप्त ।।२।। सधन कहई सुनों रघुनाथ । कोई मति प्रादो मो साथ ।। मेरी मृजा प्रावध समान । दशरथ पुत्र महा बलबान ।।४२७६॥
ओ तोडी दल प्रति संघट्ट । गरुड चलै सब जाई अहट्ट ।। असा दल बम वाक जुया । मारू घेर वाहि ठां सरा ||४२७७।। रामचंद्र मनम् बहु दिया । मधुराय विगार नह कीया । बिन अवगुन कैसे दुख देह । सबसों राख धरम सनेह ।।४२७८ ।। साधन सून बीमती कर । प्राग्या प्रभु इन मन नहीं धरं ॥ प्रैसा मधु है काहां वरांक । जाकी मानु इतनी धाक ॥४२७६।। जैसे मधु बरा सहेत । वार न लागै उसको गहेत ।। घेर लेउं इस विधि तुरंत । तो मैं सत्रुधन महंस ।।४२८०11 राम लक्षमम् इह प्राम्या दई । सेनौ साथ घनी कर लई ॥ समुद्रावर्त धनुष को लिया । वाजंतर सबद बह किया ।।४२८१॥ माता सुप्रभा 4 गया । नमस्कार करि ठाढा भया ।। प्राग्या द्यो माता जी मोहि । जीतु दुरजन पाउँ सोइ ।।४२८२१॥
माता दीये आसिरवाद । होज्यो जीत भगवंत प्रसाद ।। शत्रुधन द्वारा मथुरा पर चढ़ाई
कले सत्रुघन सेना जोडि । पहुंचे प्राय मथुरा की ठोर ॥४२८३।। बहुधा घेरि दमामा दिया । जईसे पंछी पिंजरा किया ।। इह विध घेरी च्यारू योर । सह नगरी मां मांची रोर ।।४२८४।। मधुराजा सोचे मन मांहि । मो सम बली प्रवर कोउ नाहि ॥ धेरघा मोहि सत्रुधन प्राइ । मंत्री मंत्र कर उन पाय ॥४२८५॥ अवारणक धेरे मधुराई । करई विचार वईउतरण ठाई ।। जे उमडै दल मथुरा घणी । या कु सजा लगावै घणी ॥४२८६।। कोई कहे रावणा सा बली । रामचन्द्र सों कछु ना चसी 11 रावण मारि जीते सहु देस । इन समान कोई नहीं नरेस ॥४२८७।।