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मुनि सभाचंर एवं उनका पपपुराण
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दूहा
मथुरा नगर सुहावस, अंसा अन्य न कोई ।। जिनां बह पुरष पून्य कीए, ताहि परापति होइ ।।४३४०।। इति श्री पपपुराणे मयुरा उपसर्ग विधान ८३ वां विधानक
चोपई श्वेगिक राय करें प्रसत । मथुरा सूबहु ल्पागा मन । नगर अन्य बड़े हैं अनेक । सत्रुघन किरिया क्यों प्रति टेक ।।४३४।। इतरा किम राखं वह सनेह । कहो प्रमु मो भाजं संदेह । । श्री जिनराय पिछला भव कहें । काहू मन संसा नहीं रहै ।। ४३४२।। मथुरा में जनमें देवकुमार । गदहा लादै मांटी भार || काल पाम पाल करा | लागी अगनि तिहा जल मरधा ।। ४३४३।। उहां त मरि मैमा अवतरमा । वहै बारमैं महिष पद धरमा । मातवें भव विप्र के गेह । कुल घर नाम उत्तम गति देह ।। ४३४४।।
रिचा चरिचा मंगत साध । क्रीया घगी सील विण वाद ।। असकति राजा मथुरा धणी । ललिता राशी स्यौं जोडी बरणी १९४३४५।। राजा गये साधने देस । ब्राहाण खोल नंदी केम ॥ राणी देन झरोखा द्वार | वांभगा देख्या रूप अपार ।।४३४६।। टेर लीया ऊपरि बडि बोर । भोगे मनमांनी तिह कोर ।। धमां दिवस बीता इस भांति । मंदिर में प्रायः नृप राति ।।४३४७।। राणी प्रश्चन राख्यो द्विज । राय लष्यो मन में प्रधिरज ।। कही रागी इह नर है कोण । किस विध प्राया मेरे भौंन ।।४३४८ । राणी त्रिया चरित्र विचार । राजा सौ कहै तिया बार || इह भाजपा था बंदीवान । प्राइ घुस्या मंदिर के थांन ।।४३४६।। याके पीछे दौडे सुभट । इतनी कांण मु रहे अटूट ।। बह बोल्या जे टूटू प्राजि । तो दीषित होउं मुनिराज ।।४३५०।। मैं या प्रति छिपाया राज । छोडो याहि दिया ले जाय ।।
भूपति सुरिण कीयो नमस्कार । छोड़े विप्र उसही बार ||४३५१।। राज्य भावना
विप्र के मनमें पायो सांच । अब हूं जीतू इन्द्रों पांच ।। इन्द्रिय विषय किये बहु स्वाद । संयम बिना जनम गयो बाद ।।४३५२।