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मुनि सभापंच एवं उनका पापुराम
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हस्ती सू उतरा तिह पढी । नमस्कार बहु स्तुति करी ॥ जै जै सवद करें सूर पाइ । वरष पुहप तहां मुनिराय ॥४३१५।। देही छोड़ि गये सनत्कुमार । भया देव मधुवतनीवार ।। मथुरा के पट सत्र बन बैठि । पूजा दान जिन मंदिर पैठि॥ ४३१६॥ नगर लोग भए सब सुखी । तिहां न दीस कोउ दुखी ।।४३१७।।
मधुसूदन भूयति बली, घरमा धरम दिढ चित्त ।। संयम का परसाद ते, भई स्वर्ग मां थित्त ।।४३१८॥ इति श्री पद्मपुराणे मधुसूदन विधान
८२ षां विमानक
चौपई सत्र घन राज मथुरा का कर । सह पिरजा सुखस्यों दिन टरै ।। विद्या सूल देव की संगि । उडि गई देव के प्रान भाग ।।४३१६६। सत्र धन राज मथुरा का करें । सह परिजा सुखस्यों दिन ट। सुर के प्रागै करै वखान । सत्र धन हरे मधुसुदन प्राण ।।४३२०॥
राज लए मथुरा का छीन । बा मार्ग मो गुन भए हीम ।। मधु राजा के मित्रों द्वारा प्राकमण
सूण्यां देव मित्र मोहनां । वा समय मित्र कोप्या घना ।।४३२१।। अंसा कहा मानुष्य बलयंत । जिने मारथा मेरमा मित्त ।। तल की धरती ऊपर उलट । लेस्य वैर मित्र का पनट ।।४३२२।। हां ते चित गया पाताल । व्यंतर देव बुलाए तिह काल ।। सेन्या जोढि बल्पा तब देव | धरणेन्द्र ने पूछा तत्र भेव ।।४३२३।। कहो चमर सुर अपनी बात । सेना जोडि कहाँ तुम जात ।। चमर इन्द्र कहै समझाई। मेरा मित्र मारचा सत्र घन राइ ।
वर लेण पाल्या इण घरी | वा निमित्त ए सेना जुखी ।।४३२४।। धरपेन्द्र द्वारा समझाना
सूणि बचन बोल्या घरगेन्द्र । सत्र धन लक्षमण रामचन्द्र ।। तीन लोक के हैं जगदीस । इनस कुण करि सके है रीस ||४३२५।। हम रावण कु दीये वारण । सगसी उन आगे मई असति ।। लक्षमण तगी दिसल्या नारि । वा भागें सब मानें हार ।।४३२६।।