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उसका गंवउदक ला कोइ । सब की विद्या निर्फल होइ ॥ दोन्यू देव व्यंतरी पौर । वाहि देखि भाजी घर छोहि ।।४३२७॥ बाक अंग पवन लगि चलें । सब निरोगी होइ पचन में मिलें । हमारी विणा पासू भई खीरा 1 वे हैं महाबली परवीण ।।४३२८॥ अई कउपस राम लक्षमण । बांध मोहि करें बेजतन ।। ते मन मांहि विचारी दुरी । मेसी जीव में इच्छा घरी ।।४३२६।। तब सूर बोल मैं हां देव । कहा मानुष जा का कर भेव ।। बाधु सागर प्रति गमोर । सत्र घन कहा पंसा पलधीर ॥४३३०॥ मध्य लोग में ल्याया सेन । विचार देव घरगन्त्र के बैन । मूमिगोचरी है बलवान । या की परमा मार्ने प्राण ।।४३३१।।
परजा ने ऊपर नहीं किया । सम हो का फूटा हिया !! प्रजा को बुख सेना
पहली दुःख प्रजा कुछु । मधुसुदन का बैर हूं ल्यू ॥४३३२॥ जुरि ताप पीडा फैलाइ । उछल कउवा जम मागे बिललाइ ॥ मरै लोग मिट गया भोग । व्याप्या दुणा सोग विजोग ॥४३३३।। सत्र.घन कर बगुप्त उपाय । कछुवन चल काल सौं दाव ।। छोहि नगर भजोधया गया । भाई मिले महा सुख भया ।।४३३४।। सुप्रभा माता के सनमुस्त्र । पुत्र विछोहा मिल्या भूले दुख ।। श्रीजिन भुवन इक समराइय। । करी सांतक दान बहु दिया ।।४३३५॥ मनवांछित दान भला सनमांन । बजे लिहो पानंद निसांन ।। सुणी जीत घरि घरि पानंद । सत्र धन के मनमें दुखदुदै ।।४३३६।। में मथुरा पाई थी भली । कवण करम ते मोहि न मिली ।। संपति मिल कर होय बिछोह । जाका हुई घणा श्रदोइ ।।४३३७॥
घर मंगणे न सुहावं ताहि । रात दिवस मथुरा की दाह ।। मथुरा नगरी उत्तम खेत । इसकु बर्छ सुर करि हेत 1॥४३३८।। इन्द्रपुरी से मथुरा सुभ ठौर । वा पटतर नगरी नहीं और ।। पुनि ते सहीए मंसा यांन । मथुरा इन्द्र के लोक समान ॥४३३६।।