________________
मुनि सभायं एवं उनका पद्मपुराण
मुकुट छत्र पुन की माल । सोमं मुगलाह अन लाल ॥ प्राभूषण परेण अनूप तीन खंड का से मैं भूप ॥४२६३ ।। " ने सबद करें सब लोग | करें कोतुहल अरि अति भोग || सकल नारि सीता पं गई । पट ठहरिए बधाई वई ।। ४२६४।।
विसल्या कू पटराणी किया। विषधपुर सुग्रीव ने लिया || श्रनि नगर नल नील कु दिया श्रवर राजा मांगे सोद दिया ४२६५।। लक्षमण विशल्या राम के सिवा । इनसौं बड़ी शवर न को तिया || करें राज इम आता दोइ । नगर मे हर्ष माने सब कोई ||४२६६॥ लंका राज विभीषण दिया । कंकलपुर सुग्रीव ने लिया || श्रीपुर नगर दिया हनुमान । किंनर नगर रतनजी मान १६४२६७३ भावमडल रथन पुर देस भौमी अपनी लहो दरेस || जेसे राजा थे उन पाम । त्यां त्यां की सब पुगी या ॥४२६८१
वहा
अशुभ करम को टाल ऋरि मिले कुटुंब सरेस |
मनन छित सब सुख भए पाया बहुला देस ॥४२६६।३
इति भी पश्चपुराणे रामचंद्र लक्ष्मन पट्टाभिषेक विधान ८१ व विधानक चौपाई
शत्र ुधन को राज देने की इच्छा
राम शत्रुधन लिये बुलाइ | करें वचन प्रभुजी समझाइ ॥ श्रर राज अथवी का सेहू । देस भोग मनुष्य करेहु ||४२७० ||
निदेसकेछ दरेस | तिहाँ सिहां थापक महेस ।।
आई मनमें करो विचार । जे मांगो ज के इरम्बार ॥४२७१।०
+
बहा
पोदनपुर राजग्रही, पुरपट्टा बहु ठांम ॥
जो मन इच्छो सत्रुघन कहो निहां का नाम ।।४२७२॥ चीपई
सत्रुघन द्वारा मथुरा का राज्य चाहना
ន
कर जोडि सघन कहैं। मथुरा नगर मेरे मन रहे । रामचंद्र कहते सिंह बार । मथुरापति का है बल अपार ॥४२७३१